Sunday 18 April 2010

मासूम बना अपराधी....जिम्मेदार कौन ?

आज जो कुछ भी मैं लिख रही हूँ,वो पिछले कई दिनों से मेरे ज़हन में था बस विचारों को शब्द नहीं मिल पा रहे थे,लेकिन आज सोचा कि अपनी जिम्मेदारी से भागना ठीक बात नहीं है सो इस विषय को गंभीरता के साथ लिखने की ठान ली किन्तु इस विषय पर लिखने के पीछे जो व्यक्ति हैं उनका जिक्र करना जरूरी है और वो हैं मेरे वालिद साहब जिन्होंने ये लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया। जैसा की आप लोगों को शीर्षक देखकर ही लग रहा होगा कि कौन मासूम है और कौन अपराधी बन गया ?यहाँ मैं बता दूँ कि जो कुछ मैं लिखने जा रही हूँ वो बिलकुल सत्य घटना है ,इसमें लेश मात्र भी न तो झूठ है और न ही ये कोई कल्पना है। जिन लोगों के साथ ये सब कुछ हुआ है उन्हें हम व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। हाँ व्यक्तियों और जगह का नाम जरूर बदल दिया है ताकि उनकी भावनाओं को कोई ठेस ना पहुंचे। इस घटना को समझने के लिए पूरी जानकारी होना जरूरी है कि ये सब क्यों और कैसे हुआ?
मुजफ्फरनगर यू.पी के एक गाँव रिसानी के ठाकुर नरेन्द्र सिंह अपनी पत्नी -बच्चों सहित गाँव में रहते थे,बच्चों की पढाई को देखते हुए उन्होंने शहर में घर खरीद लिया और सब वहीँ रहने लगे। सभी बच्चे शहर में पढ़े और शादी भी हो गई। ठा.साहब के सबसे छोटे पुत्र राजेश ने यूँ तो उच्च शिक्षा प्राप्त की थी लेकिन योग्यता के नाम पर उसके पास कुछ नहीं था अतः उसने गलत राह पकड़ ली। बेटे को बिगड़ता देख ठा.साहब ने उसका विवाह मीना नाम की युवती से ये सोच कर दिया कि शायद राजेश सुधर जाए पर वो शराब का आदि हो चुका था अब ये बात मीना को अखरने लगी थी,इसी बीच मीना गर्भवती हो जाती है अब उसके भीतर एक अंतर्द्वंद चल रहा था कि वो इस बच्चे को जन्म दे या नहीं लेकिन राजेश की माँ के समझाने पर वो बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो जाती है। पुत्र मोनू के जन्म के बाद अपने पति के आचरण से दुखी होकर मीना अपने ६ माह के दुधमुहें बच्चे को छोड़ कर अपने मायके चली जाती है कभी ना वापस आने के इरादे से। उधर दादी ने नन्हे मोनू को सब कुछ दिया किन्तु मोनू अपनी वास्तविक माँ के स्नेह से वंचित रहा,वह धीरे-२ बड़ा होने लगा और दादी के आलावा किसी और महिला को नहीं पहचानता था। अपने बेटे का घर बर्बाद होते देख और मोनू के बारे में सोचकर ठा.साहब ने बिरादरी वालों के साथ मिलकर मीना के परिवार पर दवाब बनाया और उसे घर ले आये उस समय मोनू कि उम्र ६-७ साल की रही होगी। मीना वापस तो आ गई लेकिन अपने बदले हुए रूप के साथ,अब वो किसी की भी परवाह नहीं करती थी यहाँ तक कि मोनू की भी नहीं,उसने अपने पति राजेश को भी अपने वश में कर लिया था क्योंकि राजेश अब सुधर चुका था उसने ज्यादा शराब पीने की वजह से मौत को करीब से देख लिया था इसलिए शराब से तौबा कर ली थी,अब वो भी अपनी पत्नी की बात मानने लगा था और वापस अपने गाँव जाकर रहने लगा,इसी बीच मीना ने एक बेटी को जन्म दिया जो मोनू से लगभग ९ साल छोटी है। ठा.साहब ने अपनी जमीन का बंटवारा कर दिया था। राजेश के हिस्से में भी ५० बीघे जमीन आई थी सो उसकी जिन्दगी भी आराम से कटने लगी। इधर मोनू भी तेजी से बड़ा हो रहा था और ९वी कक्षा में आ गया था,राजेश ने उसका दाखिला गाँव के निकट ही एक अंग्रेजी स्कूल में करा दिया लेकिन मोनू गलत सोहबत में पड़ चुका था ,पढाई -लिखाई में उसकी कोई रूचि नहीं थी इसलिए वो ना तो स्कूल जाता था ना पढाई करता था। सोने पे सुहागा ये हुआ कि राजेश ने भी अपनी झूठी शान दिखाने और मोनू की जिद पूरी करने के लिए उसे मोटरसाईकिल,महंगा मोबाइल,सोने की चेन जैसी विलासता की वस्तुएं दिला दी। अब वो मोटरबाइक से स्कूल पढने नहीं बल्कि शहर घूमने जाता था अपने दोस्तों के साथ,ये बात राजेश को मोनू के स्कूल के प्रधानाचार्य ने ने बताई तो वह हैरान रह गया,जैसे -तैसे करके मोनू ने दसवीं पास की। अब तो उसकी इच्छाएं आसमान छूने लगीं और उसके शौक भी बढते जा रहे थे। उधर गाँव वाले और खानदानी लोग मोनू को उसके माँ-बाप के खिलाफ लगातार भड़का रहे थे कि तू पढ़ कर क्या करेगा तेरे पास तो ५० बीघा जमीन है उसके मन में ये बात घर कर गई वैसे भी किशोरावस्था का मन कच्चे मिटटी के बर्तन के जैसा होता है उसे जो चाहे आकार दे दो यही तो हुआ मोनू के साथ। अब आये दिन उसकी अपनी माँ के साथ झड़प होने लगी,मोनू और उसकी मान के बीच बचपन में पैदा हुई खाई और चौड़ी होती चली गई। जब मोनू का हाथ अपनी माँ पर उठ गया तो मीना ने तय कर लिया कि उस घर में या तो मोनू रहेगा या फिर वो .......ऐसी भी कोई सगी माँ होती है क्या, जो अपनी औलाद के लिए ऐसा फरमान जारी करे ....खैर अपवाद तो हर जगह मौजूद हैं। राजेश उन दिनों बीमार चल रहा था इसलिए उसे बेटे से ज्यादा पत्नी की जरूरत थी लिहाज़ा बेटे को मार-पीट कर घर से निकाल दिया। पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त,अब यहाँ से बदलती है मोनू की तकदीर......
मोनू तो खुद भी गाँव में रहना नहीं चाहता था क्योंकि उसे शहर की हवा लग चुकी थी। वह भाग कर शहर आ गया अपनी दादी के पास,दादी ने भी अपने लाडले पोते को गले से लगाया और आसरा भी दिया लेकिन उसे क्या पता था कि जिसे वो सहारा दे रही है वही एक दिन उसके गले की फाँस बन जाएगा.अब दादी का घर ही मोनू की अय्याशियों का नया अड्डा बन गया था,दादी के घर में ही शराब और सिगरेट का जमकर प्रयोग होता था अगर दादी मना करती तो उसकी भी शामत आ जाती। दादी भी अंदर ही अंदर परेशान थी, उसने खूब कोशिश की,कि मोनू के माता-पिता उसे वापस अपने साथ ले जाएँ लेकिन उन्होंने उसकी एक ना सुनी यहाँ तक कि सारे रिश्तेदारों ने भी बहुत समझाया लेकिन मोनू के माँ-बाप टस से मस नहीं हुए,नाजाने किस मिटटी के बने हुए थे। मोनू की अय्याशियों के कारण उसके खर्चे बढते ही जा रहे थे और दादी की जमा-पूंजी को भी वो ख़तम कर चुका था और कोई काम काज वो कर नहीं सकता था क्योंकि शैक्षिक योग्यता ना के बराबर थी लिहाज़ा उसके पास अपराध करने के आलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था। शहर के कुछ जाने माने अपराधियों से उसकी जान-पहचान थी,मोनू के पास मोटरबाइक तो पहले से ही थी अतः वह लुटेरों के गिरोह में शामिल हो गया और लूट की लगातार कई वारदातें की.लेकिन पुलिस की नज़रों से ज्यादा दिन तक नहीं बच सका और उनके हत्थे चढ़ गया उस पर लूट के ७ मुकदमें अलग-२ थानों में दर्ज किए गए। ठाकुर साहब के साथ -२ पूरे परिवार की काफी बदनामी हुई,कोई उसकी जमानत तक कराने को तैयार नहीं हुआ। उसकी दादी ७५ साल की उम्र में अपने पोते की जमानत कराने के लिए दर-दर भटकी आखिर में राजेश और उसकी पत्नी को अहसास हुआ कि शायद वो अपने बेटे के साथ नाइंसाफी कर रहे हैं अगर बच्चा गलत राह पर चला गया है तो सबसे पहले माँ-बाप ही उसकी ऊँगली पकड़कर वापस लाने का प्रयास करतें हैं। मोनू के माता-पिता को भी ये अहसास तो हुआ मगर देर से .....अंग्रेजी की एक कहावत के अनुसार एक बुद्धिमान व्यक्ति जिस भूल का सुधार शुरू में ही कर लेता है,उसी कार्य को मूर्ख अंत में जाकर करता है ,तब तक काफी देर हो चुकी होती है। खैर फिर भी ....देर आयद,दुरुस्त आयद। अब सवाल ये है कि भूल किससे हुई और कहाँ हुई?दोष भी किसे दें?मोनू को,उसके माँ-बाप को या फिर उसकी किस्मत को पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि माँ-बाप ने अपनी जिद में आकर बेटे का जीवन तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।फिलहाल मोनू जमानत पर रिहा हो चुका है,किस्मत ने उसे और उसके माँ-बाप को एक और मौका दिया है अपनी भूल सुधारने का ।
इस लेख में लिखे गए घटना क्रम के बारें में मैं अपने प्रबुद्ध पाठकों कि राय जानना चाहती हूँ कि चूक कहाँ हुई और एक साधारण बच्चे को अपराधी बनाने का जिम्मेदार कौन है ?

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