Wednesday 2 June 2010

धुंए के छल्लो में तबाह होती जिन्दगी.......


जून को विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस था,इस उपलक्ष्य में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए,कहीं शिविर लगाए गए तो कहीं इसके विरोध में रैली निकाली गई लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि इन सब का क्या और कितना प्रभाव उन लोगों पर पड़ा जो सिगरेट के धुंए में अपनी खूबसूरत और अनमोल जिन्दगी को तबाह कर रहें हैं,शायद कुछ भी नहीं ? .........कुछ पल की मौज-मस्ती,फैशन और दिखावे के लिए क्या ये सब करना जरूरी है?ये सब बातें कहाँ समझ में आती हैं इन लोगों के और न ही ये समझना चाहतें हैं कि ये धीमा जहर धीरे-धीरे इनकी जिंदगी को मौत की तरफ धकेल रहा है। नशे के धुंए में अब तक न जाने कितनी जिन्दगी काल के गाल में समा चुकी हैं।डब्लू.एच.ओ की एक रिपोर्ट आश्चर्यजनक खुलासा करती है कि यदि तम्बाकू का सेवन करने वालों की संख्या यूँ ही लगातार बढती रही तो सन २०३० तक विश्व में हर साल ८० लाख लोग मरेंगे ,जिसमे २५ लाख महिलाएं होंगी।
दुनिया में तम्बाकू लोगों की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। १० में से एक वयस्क की मौत तम्बाकू सेवन से होती है। इसके चलते विश्व में हर साल करीब ५० लाख लोगों की मौत हो जाती है। दुनिया के १ अरब धूम्रपान करने वालों में २० करोड़ महिलाएं शामिल हैं। यदि लोग इसी तरह तम्बाकू का सेवन करते रहे तो इससे मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ेगी।अब केवल हल्ला मचाने से तो कुछ नहीं होगा,ठोस कदम भी तो उठाने पड़ेंगे। अगर वक़्त रहते नहीं संभले तो उन बीमारियों को झेलने के लिए तैयार हो जाएँ जिनका कोई इलाज नहीं है और जिनका नाम सुनकर ही पसीना आ जाता है। ऐसा नहीं है कि लोगों को पता नहीं है कि तम्बाकू का इस्तेमाल करने से मुंह का कैंसर,फेफड़ों का कैंसर,गले का कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी हो जाती है पर क्या करें ये लत है ही इतनी बुरी कि इसके आगे कुछ नहीं दिखाई देता ना अपनी सेहत न घर-परिवार वाले कुछ नहीं, बस दिखाई देता है तो ......तम्बाकू,पान मसाला,गुटका.बीडी और सिगरेट.....
मजेदार बात तो ये है कि पुरुषों के साथ महिलाएं भी इसका सेवन करने में पीछे नहीं हैं। विश्व की बात तो छोड़ दें भारत में भी धूम्रपान करने वाली महिलाओं की संख्या में इजाफा हुआ है। इनमे कॉलेज़ जाने वाली और नौकरी पेशा युवतियां ज्यादा हैं। इसका कारण तनाव और काम का दवाब है लेकिन महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि तम्बाकू सेवन में आधुनिक महिलाओं से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं आगे हैं। सरकारी आंकड़ों से यह बात सामने आई है कि शहरी इलाकों में ०.५ फ़ीसदी महिलाएं धूम्रपान करतीं हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में २ फ़ीसदी। शहरी महिलाएं करीब ६ फ़ीसदी और ग्रामीण महिलाएं १२ फ़ीसदी धुआं रहित तम्बाकू का सेवन करतीं हैं।ये सत्य वाकई में चिंता जनक है। स्मोकिंग करने वाले को शायद ये नहीं पता होता कि वो अपने साथ-साथ दूसरे को भी नुकसान पहुंचा रहा है यानि जो स्मोकिंग नहीं भी करतें हैं पर इसके स्मोक को झेलने के लिए मजबूर हैं उन्हें भी इससे उतना ही नुकसान पहुंचता है।
हम तो बस चेतावनी ही दे सकतें हैं कि वक़्त रहते संभल जाइये और अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इस बुरी और जानलेवा लत से अपना पीछा छुडाएं अन्यथा आप ऊपरवाले की दी हुई अनमोल जिंदगी से हमेशा के लिए हाथ धो बैठेंगे।
पूजा सिंह आदर्श