Sunday 8 May 2011

मदर्स डे पर विशेष:माँ की खिदमत ही इबादत है.....


माँ......नाम है एक खूबसूरत एहसास का,माँ...जिसमे समाई है पूरी दुनियाजिसकी तुलना इस जहाँ में किसी और से नहीं की जा सकतीमाँ के बारे में क्या लिखूं???? कहाँ से शुरू करूँ ,कुछ समझ में नहीं आताहमारा जन्म ही जिसके अंश से हुआ हो,जिसने अपने खून से हमें सींचा हो, महीने हमें अपने अंदर छुपा कर रखा हो,अपने निवाले से पहले हमें खिलाया हो,हमें बोलना सिखाया हो,ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया हो,हमारी बीमारी में,हमारी परेशानी में चिंता की सबसे ज्यादा लकीरे जिसके माथे पर आई हो,हमारी हर छोटी-बड़ी जरुरत का ध्यान रखा हो और बदले में अपने बच्चों से कभी कुछ नहीं माँगा और न कभी कोई उम्मीद की। उसके बारें में क्या लिखूं जो बस देना जानती है,त्याग करना जानती है। बच्चों की मुस्कान के साथ जिसकी मुस्कान और तकलीफ के साथ तकलीफ जुडी हो....उस माँ के बारें में लिखने से ज्यादा कोई कठिन कार्य नहीं है। माँ बच्चों के सबसे निकट होती है ,,इसलिए उनकी सबसे अच्छी दोस्त भी होती है।
८ मई को मदर्स डे मानते हैं हम....एक दिन माँ के नाम......अच्छा प्रचलन है है...होना भी चाहिए एक दिन माँ के लिए। जब साल के ३६४ दिन वो हम सब को देती है तो एक दिन उसे भी समर्पित होना चाहिए। इस दिन कुछ स्पेशल करतें हैं बच्चे माँ के लिए,उसके लिए कुछ खास बनातें हैं,उसे उपहार देते हैं,प्यार व मान-सम्मान देते हैं।
इस मदर्स डे पर मेरा मन उन लोगों के लिए लिखने को किया जो माँ-बच्चों के रिश्ते को ही भूल गए हैं। जो लोग अपने माता-पिता को ही भूल गए हैं जिन माँ-बाप ने उम्र भर सिर्फ अपने बच्चों के लिए ही किया,अपना सब कुछ उन्ही पर न्योछावर कर दिया और उसके बदले में बच्चों ने उन्हें घर से निकाल दिया या फिर उनसे अलग रहने लगे,उनसे कटने और बचने लगे। अपने माता-पिता के लिए समय नहीं है उनके पास। उस माँ के लिए समय नहीं है ,जिसके पास अपने बच्चों के लिए समय के अलावा और कुछ नहीं होता। एक माँ अपने चार बच्चों का ध्यान रख सकती है बिना किसी भेदभाव के,बिना किसी परेशानी के लेकिन चार बच्चे मिलकर एक माँ का ध्यान नहीं रख सकते। बुढ़ापे में उसे प्यार व समय नहीं दे सकते उसे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर देते हैं। धिक्कार है ऐसी औलाद पर। दुनिया में बहुत से ऐसे माँ-बाप हैं जिन्हें अपने जीवन की सांध्य बेला में अपनों से बस उपेक्षा ही मिलती है और उन्हें किसी वृद्ध-आश्रम की शरण लेनी पड़ती है। ऐसे में मदर्स डे मनाना कितना उचित है ????
हम सभ्य समाज में रहते हुए खुद को सभ्य कहने का दावा करतें हैं। क्या वाकई हम सभ्य हैं ???विदेशों की नक़ल
करके अपने माँ-बाप को खुद से अलग कर देना,उन्हें किसी वृद्ध-आश्रम में भेज देना, ये न तो हमारी सभ्यता है और न ही हमारी संस्कृति। ऐसा विदेश में चलता है क्योंकि वहां की संस्कृति अलग है। वहां तो माँ-बाप ही बच्चों से इतने नहीं जुड़े होते तो बच्चे ही क्या जुड़ेंगे ??लेकिन हमारे यहं ऐसा करना सबसे बड़ा दुष्कृत्य है। इसके आलावा हम मदर्स डे के उपलक्ष्य में ये भी सन्देश देना चाहतें हैं कि जब माँ अपने किसी बच्चे में अंतर नहीं कर पाती,तो फिर बेटियों के साथ भेदभाव क्यों ?कन्या भ्रूण-हत्या जैसा जघन्य अपराध एक माँ कैसे कर सकती है?बेटियां होंगी तभी तो माँ होगी। जब बेटिओं का ही अस्तित्व मिटा दोगे तो ....मदर्स डे कहाँ से मनाओगे??बेटियों को भी जीने दीजिए उन्हें भी हक है... इस दुनिया में अपनी ऑंखें खोलने का।
माँ तो एक सुखद छाँव है,जिसके नीचे बच्चों को आसरा मिलता है। एक दिन माँ के नाम नहीं बल्कि अपनी तमाम जिन्दगी भी उसके नाम कर दे तो कम है। हर दिन उसका है,उसकी खिदमत में ही पूरी जिन्दगी बिता दें तो भी उसका क़र्ज़ नहीं चुका पाएंगे। माँ के क़दमों के नीचे जन्नत होती है,उसकी खिदमत खुदा की इबादत है। यही इबादत हमें जन्नत का रास्ता दिखाती है और माँ की दुआएं हमें बुलंदियों तक पहुँचाती है।माँ के बारें में जनाब मुनव्वर राना ने क्या खूब लिखा है कि .....
लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फा नहीं होती।
पूजा सिंह आदर्श

Saturday 7 May 2011

मेरी माँ...सा कोई नहीं......

रिश्ते तो और भी हैं हमारी हयात में
माँ..सा मगर नहीं है कोई कायनात में,
माँ ने हमें जन्म दिया,दुनिया में पहचान दी
ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया,
उसी ने हमें इंसान बनाया
गीले में सोकर हमें सूखे में सुलाया
अपना निवाला भी हमें खिलाया
अपने बच्चों के लिए वो सब सहती है
मगर मुहं से उफ़ तलक न कहती है
हर दुःख, हर तकलीफ वो उठाती है
क्या उसके प्यार में कोई कमी आती है
बच्चे तो उसके जिस्म का हिस्सा हैं
उनमे.. फर्क वो कहाँ कर पाती है
माँ के क़दमों के तले ही मेरी जन्नत है
उसकी खिदमत ही बस मेरी मन्नत है
माँ की गोद से बढ़कर कोई मखमल नहीं
उसकी मुस्कान से सुंदर कोई फूल नहीं
मेरी माँ की दुआओं का ताबीज साथ रहता है
हर मुसीबत से वो मेरी हिफाज़त करता है
माँ...... की जगह ले पाया है कौन ??
उसका क़र्ज़ अदा कर पाया है कौन ??
माँ...... हम कर्जदार हैं तेरे ये क़र्ज़ न उतरेगा
लेकिन माँ की खिदमत का सबाब जरूर मिलेगा।
पूजा सिंह आदर्श

Friday 6 May 2011

दि मोस्ट वांटेड: अभी जिन्दा है दुनिया का सबसे खतरनाक शख्स....


लादेन मारा गया,आख़िरकार अमेरिका ने उसकी मौत पर अपनी मोहर लगा दीजहाँ वो छिपा हुआ था मौत भी उसे वहीँ मिलीपाकिस्तान की सरजमीं जो उसकी पनाहगाह थी,उसकी कब्रगाह भी बनी।उसकी मौत के साथ आतंकवाद से जुड़ा एक अध्याय ख़त्म हो गया। लेकिन लादेन की मौत के बाद उठा सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या उसकी मौत के बाद दुनिया महफूज़ हो गई है????क्या अब आतंकवाद,दहशतगर्दी से हमें छुटकारा मिल गया है???? तो इस सवाल का जवाब सुनने के लिए तैयार रहिये.....और जवाब है.. नहीं..हम आज भी महफूज़ नहीं हैं क्योंकि अभी जिन्दा है वो शख्स जिसे अल्बर्ट किंग ने दुनिया का सबसे खतरनाक शख्स कहा है। उसके सर पे भी दहशतगर्दी का इलज़ाम है। वो भी दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठनों में से एक लश्कर-ऐ -तएबा की सर परस्ती करता है, उसके सर पर भी हजारों का खून है। वो भी अमेरिका से मुहरबंद अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी है। लेकिन वो ओसामा बिन लादेन की तरह कहीं छिपकर नहीं रहता,उसकी तलाश में सैकड़ों सेटेलाइट और ड्रोन आसमान में नहीं मंडराते। वो करांची के शानदार महलनुमा घर में रहता है,आलिशान पार्टियों की मेजबानी करता है। उसकी दावत में न्योते के इंतजार में पाकिस्तान के तमाम जनरल और नेता रहते हैं। जी हाँ.....ये शख्स है... "दाउद इब्राहिम"। जो अपने जुर्म और दहशत के निजाम को एक कम्पनी की तरह चलाता है-डी-कम्पनी।
ओसामा बिन लादेन को पनाह देने वाला,तमाम आतंकवादी अभियानों का फाईनेंसेर ,परमाणु हथियारों का सौदागर,युवा पीढ़ी की नसों में नशे का ज़हर घोलने वाला। देश के गृह-मंत्री पी.चिदम्बरम यह कह सकतें हैं कि हम अमेरिका की तरह दाउद को निशाना नहीं बना सकते,उनकी कोई मजबूरी होगी लेकिन हिन्दुस्तानी आवाम की कोई मजबूरी नहीं है। लादेन के मारे जाने के बाद हर हिन्दुस्तानी के दिल से यही आवाज़ आ रही कि ...बस हमें दाउद ला दो जिन्दा या मुर्दा...... । १९९३ में मुंबई बम कांड में जो लोग इसकी दहशतगर्दी का शिकार हुए और उसके बाद २६ नवम्बर २००८ को मुंबई हमले में जो लोग मारे गए उनके घरवालों के दिलों से तो यही आवाज़ निकल रही है कि जो हाल लादेन का हुआ वही दाउद का भी होना चाहिए। आइये एक नज़र डालतें हैं उसके काले कारनामों पर-
१-१९९३ में मुंबई बम-कांड-२५७ लोग मारे गए।
२-१९९० में अफगानिस्तान गया,और लादेन से मिला।
३-अलकायदा के साथ गठजोड़ ,अमेरिका ने ग्लोबल टेरेरिस्ट घोषित किया।
४-२००८ में गैंग को लश्कर-ऐ-तैयबा से से जोड़ लिया।
५-अलकायदा के टेरर नेटवर्क को हवाला और हथियारों की सपोर्ट।
६-२००१ में गुजरात में आतंकी घटनाओ के लिए फंडिंग।
७-१९९३ के बाद मुंबई की हर आतंकी घटना में डी-कम्पनी का सहयोग।
८-लश्कर के नौसैनिक विंग की पूरी देखरेख दाउद के हाथ में तथा उसी ने २६/११ की घटना को अंजाम दिया।
ये तो है उसके काले कारनामों का चिठ्ठा जो कुछ उसने अब तक किया है जिससे उसे ग्लोबल टेरेरिस्ट घोषित किया गया । इसके आलावा उसका मेन बिजनेस जिसके बल पर वो करता राज.... अकेले मुंबई में डी कम्पनी का अरबों डालर का टर्नओवर है। रिअल ऐस्टेट,हवाला,ड्रग्स,कांट्रेक्ट किलिंग,सट्टा,फ्लैश,ट्रेड में उसका एक छत्र राज चलता है। अफगानिस्तान से ड्रग्स का कच्चा माल दुनिया भर के माफिया तक पहुँचाने की सप्लाई चेन पर भी दाउद का कब्ज़ा है। अमेरिका और यूरोप में अरबों डालर की सम्पत्ति डी कम्पनी के पास है। इसके अलावा बॉलीवुड में भी डी कम्पनी का अच्छा -खासा दखल है। वो यहाँ पैसा लगाने के साथ-साथ नई रीलिज़ में हिस्सा भी लेता है.. यहाँ उसके टेरर हर कोई वाकिफ है। आई.एस.आई का वो खास आदमी है। इसकी मदद से ही वो देश में गुस सके। १९९३ में धमाकों के बाद दाउद आई.एस.आई की मदद से ही दुबई पहुंचा और उसके बाद करांची। तब से वो लगातार यहीं रह रहा है।
अब इतने खतरनाक इन्सान का इस तरह खुला घूमना क्या उन लोगों के साथ गद्दारी नहीं है... जो अपने ही देश में शहीद हुए,आतंकवाद का शिकार हुए। लादेन तो मारा गया अब दाउद क्या करना है या उसका क्या होगा ? ये देखने वाली बात है। वैसे ओसामा की मौत के बाद उसके साम्राज्य की नीव तो हिल गई होगी। अब वो भी जल्द ही पाकिस्तान से बाहर भागने की फिराक में होगा। पाकिस्तान तो हर जुर्म ,हर गुनाह की पनाहगाह है। पाप का घड़ा भर के छलक तो काफी समय से रहा है लेकिन अब इसके फूटने की नौबत आ गई है और इंशाल्लाह वो दिन दूर नहीं जब इन दरिंदो की पनाहगाह ही इनकी कब्रगाह बनेगी।
पूजा सिंह आदर्श