Wednesday 22 September 2010

दबंग की दबंगई में दम है......भाई.....

बहुत दिनों से किसी फिल्म के बारे में कुछ नहीं लिखा,क्योंकि काफी टाइम से कोई फिल्म देखी भी नहीं थी,अभी ३-४ दिन पहले सलमान खान की दबंग देखी,फिल्म मुझे पसंद आयी और फिर सोचा कि अपनी लेखनी को इस तरफ मोड़ा जाए।कोई भी फिल्म जल्दी से मुझे इम्प्रेस नहीं करती है पर इस फिल्म ने ताजगी का अहसास कराया।सलमान का फ्रेश लुक ,सोनाक्षी का ताजगी और मासूमियत भरा चेहरा.....सलमान की दबंग फिल्म रिलीज हो के हिट भी हो गई...ईद-उल-फितर के मौके पर रिलीज़ होने के कारण और इसके आस-पास कोई फिल्म रिलीज़ होने के कारण इसे भरपूर फ़ायदा मिला ....बहरहाल कारण जो भी हो पर फिल्म तो हिट है और सलमान भाई के खाते में एक और सुपरहिट फिल्म का इजाफा हो गया.....अब दबंग की तूती बोल रही है और बोले भी क्यों न....आखिर उनकी दबंगई में तगड़ा दम है भाई। कसा हुआ और एकदम फिट शरीर...उस पर स्टायलिश मूंछे...जो इंस्पेक्टर चुलबुल पाण्डेय यानि सलमान की पर्सनालिटी को एकदम सूट कर रही हैं...उसपर काला चश्मा और उसे बड़े स्टाइल के साथ पीछे शर्ट के कॉलर पर लगाना...और फ़ॉर्मल कपड़ों का मतलब सिम्पल पैंट-शर्ट का क्या गज़ब कॉम्बीनेशन पहना है पाण्डेय जी ने....क्या लगे हैं सलमान इस फिल्म में,वैसे सलमान की फ़िल्में देखने का मुझे कोई खास शौक नहीं है। सच बात बताऊँ तो मैंने ये फिल्म सोनाक्षी सिन्हा की वजह से देखी..चलिए उनकी बात बाद में करेंगे पर फिल्म में सलमान ने मुझे काफी इम्प्रेस कर दिया,ये तो रही फिल्म देखने की वजह,,,,,,अब आगे बढ़ते हैं। सलमान के कपड़ों के बाद फिल्म में जो खास है वो है ....मिर्ची का तड़का यानि एक्शन और कॉमेडी का बेहतरीन तालमेल.....जो पूरी फिल्म की जान है। इसके बाद बारी आती है उस खासियत की जो फिल्म की धड़कन है और फिल्म में रक्त -संचार का काम करती है,,,, वो है इस फिल्म का संगीत......जो काफी पहले ही हिट हो चुका है....तेरे मस्त-मस्त दो नैन.... सबका चैन चुराने में कितने कामयाब रहे, ये बताने की शायद जरुरत नहीं है......मुन्नी भी काफी बदनाम हो चुकी है। हम यहाँ कोई समीक्षा नहीं कर रहे हैं,ये मेरा अपना अनुभव है,जो कुछ भी मैंने महसूस किया वो लिख दिया बस इतनी सी ही बात है। दरअसल बात यह है की हमारे समाज में फिल्मों के नायक बड़ा अहम् रोल निभातें हैं...जो कुछ भी कमाल वो परदे पर करतें हैं पब्लिक उनसे इम्प्रेस हुए बिना नहीं रह पाती ....खाकी वर्दी पहने हुए दबंग के रूप में उन्हें अपना नया नायक मिल गया है। फिल्म की हेरोइन सोनाक्षी के बारें में क्या कहें,उन्होंने बॉलीवुड को नई संभावनाएं दे दीं हैं.....अपनी पहली फिल्म में ही परिपक्व अभिनय करके ये बता दिया है कि एक्टिंग उनके खून में हैं जो उन्हें विरासत में मिली है। अभिनय और खूबसूरती का अनूठा संगम हैं सोनाक्षी.....इसके आलावा अरबाज़ भी मक्खी के किरदार में खूब जमे हैं,,,,महेश मांजरेकर ने शराबी का छोटा सा रोल निभा के ये बता दिया कि एक्टिंग के वो एक मंझे हुए खिलाडी हैं......सोनू सूद के रूप में बॉलीवुड को अपना नया विलेन मिला है। जिनसे विलेन के किरदार की उम्मीद किसी ने नहीं की थी. पूरे बॉलीवुड मसाले के साथ तैयार की गए गई फिल्म कुलमिलाकर फुल-टू पैसा वसूल है। चुलबुल पाण्डेय का जादू चल गया.....और फिल्म हो गई सुपर-डुपर हिट....वो भी दबंगई के साथ......
पूजा सिंह आदर्श

Thursday 9 September 2010

जब मैंने पहली बार बिग बी को देखा.......


पत्रकारिता ने हमेशा से ही मुझे अपनी ओर आकर्षित किया और मैंने एक पत्रकार बनने का सपना अपनी आँखों में सजायाबस अपने इस सपने को पूरा करने के लिए मैंने एम.जे.पी रूहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली में पत्रकारिता के कोर्स में दाखिला ले लिया। बात वर्ष २००१ की है। पत्रकार बनने का जुनून सर पे इस कदर सवार था कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए बस पत्रकार बनना है।पत्रकारिता की कक्षाएं शुरू होने के बाद हमें असाइनमेंट मिलने लगे थे और हम पूरे जोश व उत्साह के साथ इस काम को पूरा करने में जुट जाते थे। शुरुवात में तो हमें छोटे-छोटे असाइनमेंट दिए गए जिन्हें हमने समय से पूरा करके अपने एच.ओ.डी की नजरों में एक खास जगह बना ली थी ,अपनी इसी छवि के कारण हमें एक दिन वो असाइनमेंट मिला जिसका इंतजार हर उस फ्रेशर को होता है जो अपने कैरिएर की शुरुवात करने जा रहा हो-----------हमें काम मिला रामपुर में होने वाली श्री अमिताभ बच्चन की रैली को कवर करने का और इसके लिए तीन लोगों का ग्रुप बना दिया गया। मैं,मेरा सहपाठी मुकुल सक्सेना और दीक्षा। हम तीनो को ही रामपुर रवाना होना था लेकिन ऐन वक़्त पर दीक्षा का जाना कैंसिल हो गया,एक बार को तो ऐसा लगा कि शायद हम भी नहीं जा पाएंगे लेकिन हमने तो ठान लिया था कि जाना तो जरूर है। रिपोर्टिंग के लिए एक बार को न सही पर बिग बी को तो हर हाल में देखना ही था। फिर ऐसा मौका हमें दोबारा कहाँ मिलता??????????ये दिसम्बर की बात है ,,,सर्दिओं के दिन थे इसलिए निकलते-निकलते ही हमें देर हो गई। बरेली से रामपुर की दूरी ६५ किमी है।
जब तक हम वहां पहुंचे रज़ा कॉलेज रैली का मैदान खचा-खच भर चुका था पैर तो क्या तिल रखने भर को जगह नहीं थी। जैसे-तैसे भीड़ को चीरते हुए हम प्रेस गैलरी तक पहुंचे ,यहाँ तक पहुँचने में बैरीकेटिंग को पार करते समय मेरे घुटने में भयंकर चोट लग गई थी,उसमे से खून रिस रहा था।लेकिन बिग बी को देखने व सुनने के लिए ये कीमत बहुत कम थी। प्रेस गैलरी में मीडिया कर्मिओं का जमावड़ा लगा था। भीड़ अमिताभ बच्चन जिंदाबाद के नारे लगा रही थी.......श्री बच्चन अपने निर्धारित समय से करीब २ घंटे देरी से पहुंचे।मंच के ठीक पीछे ही हैलीपैड बनाया गया था....जिस पर देखते ही देखते धूल उडाता हुआ हैलीकॉप्टर उतरा और फिर उसमे से नीला सूट पहने उतरे श्री अमिताभ बच्चन....... जिन्हें देखते ही बस ऑंखें ठहर सी गई और सारी तकलीफें भी ख़तम हो गई......बिग बी हमसे कोई दस कदम की दूरी पर थे.....कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बिग को देखने या उनसे कोई सवाल करने का मौका भी मिलेगा....बिग बी आए मंच पर और उनके साथ थी जया बच्चन ,अमर सिंह और मुलायम सिंह और आज़म खान । जब बिग बी ने बोंला शुरू किया तो बस तालियों की गडगडाहट ही सुनाई दी.....क्या बोलतें हैं बिग बी......धारा प्रवाह हिंदी......भाषा पर ऐसा नियंत्रण ऐसा कि अच्छे-अच्छों की बोलती बंद हो जाए.....करीब आधा घंटा मंच पर बिताने के बाद जब उन्होंने वापस हैलीपैड की ओर रुख किया तो रास्तें में मीडिया वालों ने उन्हें रोक लिया जो कि बहुत स्वाभाविक था। हम सब इतनी देर से इंतजार जो कर रहे थे.....बिग बी के रुकते ही मीडिया ने उन पर सवालों की बौछार कर दी...इन्ही सवालों के बीच एक सवाल मैंने भी कर ही डाला जिसके लिए मैंने खुद को तैयार नहीं किया बस सहसा ही मुंह से निकल गया कि..... गाँधी परिवार से इतनी दूरी क्यों????इस पर उन्होंने भी तपाक से बोल दिया कि वक़्त-वक़्त की बात है....मुझे मेरा जवाब मिल गया था......मेरे लिए बस इतना ही काफी था, इसके बाद और कुछ पूछा ही नहीं गया और किसी और ने क्या पूछा ये भी याद नहीं.....मीडिया के सवालों के जवाब सभी ने दिए...इसके बाद सब एक-एक करके हैलीकॉप्टर की ओर बढ़ गए....और धूल के गुबार के साथ पलक झपकते ही गायब हो गए.....एक नायब व्यक्तित्व के मालिक हैं बिग बी....उनके जैसा कोई न तो है और न ही हो सकता है।
मेरे जीवन का ये सबसे सुखद संस्मरण है...जिसे आप सब से बाँट कर जो अनुभूति मुझे मिल रही है उसका तो कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता।उसके बाद मैं और मुकुल दोनों देर रात बस का सफ़र करके बरेली पहुंचे....अगर हम अपने कुछ साथ लाये थे तो वो थी... बिग बी... की छवि और उस रैली का अविस्मर्णीय अनुभव .......
पूजा सिंह आदर्श

Thursday 2 September 2010

खुले आम सजता..देह का बाज़ार......


शाम हुई सज गए......... कोठों के बाज़ार,
मन का गाहक न मिला बिका बदन सौ बार।
ये शेर मैंने एक बार किसी कवि सम्मलेन में सुना था,जिसमे मुझे कई नामचीन कविओं और शायरों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। शेर तो याद रहा लेकिन कवि नाम याद नहीं...खैर इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता...इसका मतलब समझने की जरुरत है कि कितनी गहरी बात छुपी है इस शेर में.....उस insan की पीड़ा छुपी है जिसे अपना बदन बेचने जैसा घिनौना काम करना पड़ता है.....कहने को तो लिखने के लिए ये कोई नया मुद्दा नहीं है पर फिर भी ये वो मुद्दा है जिसपर,लिखना जरूरी है और लगातार लिखा भी जाना चाहिए। मानवीय संवेदनाओं के चलते कुछ सामाजिक समस्याओं के प्रति हम उतने गंभीर नहीं होते जितना हमें होना चाहिए बस यही सोच कर रह जातें हैं कि अरे....इसपर तो कई बार और बहुत कुछ लिखा जा चुका है। लेकिन अपने दायित्व से पीछे न हटते हुए आज उस विषय पर कलम चलाने की सोची जो एक लड़की होने के नाते भी मुझे लिखने पर मजबूर करता है। मेरा ये लेख समर्पित है उन लड़किओं और महिलाओं के नाम जो अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए उस दल-दल में घुसने को मजबूर हो जाती हैं जिसे समाज ने वैश्यावृति का नाम दिया है।वैश्यावृति हमारे लिए कोई नयी चीज़ नहीं है ये कई सौ साल पहले भी होती थी और आज भी होती है ....वेश्यालयों को संरक्षण तब भी मिलता था और आज भी मिलता है.......इससे आने वाली सड़ांध पूरे समाज को दूषित करती है ये जानते तो सब हैं पर मानता कोई नहीं ......पर न मानने से सच झूठ में तो नहीं बदला करता ....
हर शहर में एक ऐसी बदनाम जगह जरूर होती है जिसे इस सभ्य समाज ने रेड लाइट एरिया का नाम दिया है। यहाँ शाम होते ही सज जाती है बेजान जिस्मो की मंडी,,,बेजान इस लिए कहा क्योंकि जान तो है पर आत्मा नहीं है,जिस काम को करने में आत्मा साथ न दे उसे और क्या कहा जाएगा??????अभी कुछ दिन पहले ही हमारे मेरठ शहर में यहाँ के रेड लाइट एरिया से पुलिस ने छापा मारकर करीब सात नेपाली लड़किओं को इस दल-दल से बाहर निकाला यहाँ से बरामद सभी लड़कियां नाबालिग थी और सभी की उम्र १६-१७ साल से जयादा नहीं थी। इन सभी लड़किओं को नेपाल से भारत काम दिलाने के बहाने से बहला-फुसलाकर लाया गया था। ये सब लड़कियां गरीब घरों की थी जिन्हें काम की बेहद जरुरत थी और इनकी इसी मजबूरी का फ़ायदा उठाकर,,,,जिस्म के दलालों ने इनकी इज्ज़त का सौदा करके ,इन्हें ये नरक भोगने के लिए छोड़ दिया। जहाँ हवस के भूखे भेड़िये इनके जिस्म को दिन रात नोचतें हैं। दलालों की इस मंडी में सब कुछ बिकता है......जिस्म के साथ आत्मा,इंसानियत ,भावनाएं ।इस दुनिया में सब कुछ बिकाऊ है, इसलिए इन सब के खरीदार मिल जायेंगे आपको। किसी को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि कोई इस घिनौने काम को क्यों कर रहा है बस अपना मतलब निकलना चाहिए। अब क्या होगा इन लड़किओं का,,,क्या ये समाज में सर उठा कर जी पाएंगी....क्या इनके घर वाले इन्हें अपनाएंगे??कौन तो इन्हें काम देगा??कौन इनका हाथ थामेगा????एक बड़ा सवाल हम सब के लिए.........
मुझे नहीं नहीं लगता की कोई भी औरत शौकिया इस काम को करती होगी ,किसी भी औरत को खुद को धंधेवाली कहलवाना पसंद होगा....इससे बड़ा दाग तो उसके लिए हो ही नहीं सकता। अपने घर-परिवार को पालने,अपने बच्चों को दो वक़्त की रोटी खिलाने के लिए उसे इस कीचड में उतरना ही पड़ता है। कोई भी माँ अपने बच्चे को भूख से बिलखते हुए नहीं देख सकती जब उसके पास कोई और रास्ता नहीं बचता तो अंत में उसे अपना जिस्म ही याद आता है,कि इसे ही बेच कर ही अपने बच्चे या घरवालों का पेट भर सके। क्यों??? आखिर???क्यों.... हम अपने को सभ्य कैसे कह सकते हैं जब हम किसी की मजबूरी का फ़ायदा उठा कर उससे वो काम कराएँ जिसे इस सभ्य समाज में सबसे ख़राब नजरों से देखा जाता है। न जाने कितनी मासूम लड़किओं को रोजाना इस दल-दल में धकेल दिया जाता है इनमे से शायद ही कोई खुशनसीब लड़की होती होगी जिसे इस नरक से समय रहते मुक्ति मिल जाए। पर मुक्ति मिलने से भी क्या होगा??????????????क्या ये समाज इन्हें वही इज्ज़त देगा जो इन्हें मिलनी चाहिए?????????????एक गंभीर सवाल पूरे समाज के लिए....???????
जो महिला इस गंदगी से बाहर निकलना चाहती है....क्या उसके पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं होनी चाहिए......क्या इस समाज में इनके लिए कोई जगह नहीं है।इनके मासूम बच्चों को इस गंदगी से निकालना क्या हमारा कर्त्तव्य नहीं है??हम क्या दे सकतें हैं इन्हें....इन सब के उत्तर हमे खोजने हैं अभी....लेकिन जल्द और समय रहते।
पूजा सिंह आदर्श