Wednesday 21 September 2011

मिड-डे-मील.या आत्मसम्मान का क़त्ल ..


साक्षरता की कमी या यूँ कहे कि निरक्षरता हमारे देश की सबसे बड़ी गंभीर समस्या है ...आज भी गाँव-देहात की बात तो छोड़ दें ,शहरों में भी बच्चे स्कूल नहीं जाते या अगर गए भी तो कक्षा ५ के बाद स्कूल जाना बंद। माध्यमिक और उच्च शिक्षा तो बहुत दूर की कौड़ी है। हम आज भी विकासशील देशों की श्रेणी में आते हैं... क्यों????इसके पीछे साक्षरता की कमी बहुत बड़ा कारण है। जिस देश के नौनिहाल ही अनपढ़ होंगे उस देश का मुस्तकबिल कैसा हो सकता है??एक संजीदा सवाल ,,पूरे समाज के सामने ??
देर से ही सही लेकिन ये बात हमारी सरकार को समझ में आई। इसीलिए सरकार ने ग्यारवीं पंचवर्षीय योजना में साक्षरता को शामिल कर लिया है। अब देश में संपूर्ण साक्षरता लक्ष्य बन गई है।कक्षा ५ तक प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया कि कम से कम कक्षा ५ तक सभी बच्चे स्कूल जाये और शिक्षा ग्रहण करें। इसलिए सर्व शिक्षा अभियान योजना शुरू की गई...जिसका स्लोगन है ....सब पढ़ें,सब बढ़ें। यहाँ तक तो सब ठीक है कि इस समस्या पर ध्यान दिया गया ,योजना बनाई गई लेकिन सवाल ये उठता है कि कोरी योजनायें बनाने से क्या होगा ??स्कूल में पढने के लिए बच्चे भी तो आने चाहिए। और ये एक बहुत बड़ी चुनौती है.....कि बच्चों को पढने के लिए कैसे प्रेरित किया जाये ??बच्चों का स्कूल आना बेहद जरूरी है इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए केंद्र व राज्य सरकार ने एक योजना शुरू की..जिसका नाम है मिड-डे-मील यानि मध्यान भोजन। इस योजना का उद्द्येश्य है स्कूल में बच्चों की संख्या को बढ़ाना....सरकार का ऐसा मानना है कि यदि स्कूल में बच्चों को मुफ्त भोजन दिया जाये तो बच्चे पढने आएंगे। इसके लिए स्कूल में बाकायदा एक रसोई,एक कुक की व्यवस्था की गई और इस बात पर भी ध्यान देने को कहा गया कि बच्चों को दिया जाने वाला भोजन पौष्टिक और स्वच्छ होना चाहिए। शिक्षकों को भारी निर्देश भी दिए गए कि ये सारी व्यवस्था एकदम सुचारू रूप से चलनी चाहिए अन्यथा शिक्षक नप जायेंगे।
योजना लागू हुई विवादों के साथ आगे भी बढ़ी और आज भी चल रही है.....लेकिन सबसे बड़ा सवाल यहाँ यह उठता है कि क्या मिड-डे -मील योजना वास्तव में बच्चों के हित में है.. ?????क्या सिर्फ खाना बाँट देने से बच्चे स्कूल आते हैं.. ??अगर आते भी हैं तो क्या पढने आते हैं...????और क्या लाइन में खड़ा करके खाना बाँट कर हम उनको भीख नही दे रहे...????क्या हम बच्चों के अंदर का आत्मसम्मान खत्म नही कर रहे...???क्या मुफ्तखोरी की आदत नही डाल रहे उनमे....???प्राथमिक स्कूल में पढने वाले बच्चे खाने के लिए लाइन में लगे हुए ऐसे मालूम देते हैं, जैसे मानो किसी लंगर की लाइन में खड़े हों। बच्चे का मन एक कोरी स्लेट की तरह होता है जिसपर जो चाहो वो लिख दो। बच्चा वही सीखता है जो वह देखता है और अनुभव करता है। जब उसे बिना कुछ किए ही खाने की आदत पड़ जाएगी फिर क्या होगा???कक्षा ५ के बाद मिड-डे -मील कहाँ से आयेगा..??क्या ये नन्हे-मुन्हों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है ???ऐसे बहुत सारे सवाल हैं। जिनका उत्तर अभी किसी की समझ में नहीं आ रहा है...लेकिन इसके दूरगामी परिणाम हमें एक दिन जरूर दिखाई देंगे। बच्चों को भोजन देने की बात ठीक है लेकिन मुफ्त में नहीं ,अगर उनको खाना देना ही है तो उसके बदले में उनसे श्रम करवाया जाना चाहिए कोई भी ऐसा काम जो उनके स्तर का हो,जैसे-फुलवारी में काम कराना,कक्षाओं को साफ़ रखना,स्कूल की साफ़-सफाई का ध्यान रखना,खाना बनवाने में मदद करना आदि। जिसके बदले में उन्हें खाना दिया जाये तो उनके अंदर का आत्मसम्मान मरना नही चाहिए बल्कि उन्हें ऐसा लगे कि हमने कुछ काम किया है तब उसके बदले में हमें रोटी मिली है। मुफ्त में खाना बांटने से बच्चों का भविष्य बिगाड़ रहें हैं हम। इसके साथ ही न तो बच्चों को अच्छा साफ़-सुथरा और पौष्टिक भोजन ही मिल पाता है। खाने के नाम पर सिर्फ खाना-पूरी हो रही है ये तो सभी अच्छे से जानते हैं और देख रहे हैं ।
बच्चे हमारे देश का सुनहरा मुस्तकबिल हैं। उनके ही नाजुक कंधो पर देश भार है। ये कंधे इतने मजबूत होने चाहिए कि अपने देश के भविष्य को संभाल सकें। मेहनत और आत्मसम्मान के साथ कमाई हुई रोटी को निवाला बना सकें।
पूजा सिंह आदर्श

Saturday 17 September 2011

अपने बच्चे को मौत नहीं,जिन्दगी दीजिये.....

तेज रफ़्तार आज के दौर की पहचान बन चुकी हैधीमे चलने वालों के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है, ही उनकी कोई क़द्र हैऔर तेज़ रफ़्तार को ही अपनी जिन्दगी बनाने वाले कोई और नहीं है बल्कि आज के युवा हैं.....युवाओं की जिन्दगी बन चुकी है...तेज़ रफ़्तार ....जिसकी उन्हें नशे की तरह इस कदर आदत पड़ चुकी है..कि इस नशे के बिना सुकून नहीं मिलता। युवाओं के लिए ये नशा है... मोटरबाइक पर फर्राटे के साथ उड़ान भरने का और हवा के साथ बातें करने का। आजकल युवाओं सर पर एक अजीब सा भूत सवार है......अपनी बाइक को इतना तेज़ दौड़ाने का,,कि अपनी अनमोल जिन्दगी को भी दावं पर लगाने से नहीं चूकते। उन्हें इस बात का जरा भी अहसास नही कि तेज़ रफ़्तार से सड़कों पर दौड़ने वाली ये बाइक उनकी जरा सी लापरवाही के कारण उन्हें मौत के मुंह में भी धकेल सकती है। जैसा कि अभी पूर्व क्रिकेटर अजहरुद्दीन के साथ हुआ,बाइक पर सवार उनके जवान और होनहार बेटे अयाजुद्दीन की ऐसी ही एक सड़क दुर्घटना में दर्दनाक मौत हो गई। उनके साथ उनका एक फुफेरा भाई भी इस घटना में मौत का शिकार हुआ। किसी भी परिवार में एक साथ दो-दो जवान मौत का हो जाना किसी कहर से कम नहीं है और किसी भी इंसान को अंदर तक तोड़ देने के लिए काफी है। ये वो दर्द है जिसकी टीस जिन्दगी भर तक उठेगी।
लेकिन ये क्यों हुआ ????क्या ये जानना जरूरी नहीं है ???बिल्कुल है ....माता-पिता अपने बच्चे को लाड में आकर बाइक का वो तोहफा दे देते हैं जो शायद उनकी मौत की वजह बन जाता है।माँ-बाप ने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा होता कि अपने बच्चे जो तोहफा वो लाकर दे रहे हैं वो उनसे उनका बच्चा ही छीन लेगा???आजकल बच्चा १६-१७ साल का हुआ नही कि उसे चलाने के लिए मोटरबाइक चाहिए। बाइक पर चलना फैशन के साथ-साथ एक स्टेटस सिम्बल बन गया है। लड़के सोचते हैं कि १०वी पास करते ही माँ-बाप उन्हें बाइक दिलवा दें,जिससे उनके दोस्तों के बीच उनका रुतबा और बढ़ जाये...बाइक लेने के साथ ही इन युवाओं का एक और शौक भी परवान चड़ता
है और वो है....मोटरबाइक के साथ खतरनाक करतब दिखाना यानि स्टंटबाज़ी करना। इस शौक का जुनून इस कदर है कि इन्हें अपनी जान तक की कोई परवाह नहीं होती।
इनदिनों बाज़ार में तरह-तरह की मोटरबाइक से पूरा बाज़ार पटा हुआ है......५० हज़ार रु तक से लेकर १५ लाख रु तक की बाइक बाज़ार में उपलब्द है । जिसमे पावर इंजन,पावर ब्रेक,हाई स्पीड और न जाने कितनी खूबियाँ हैं। जो लड़कों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।एक से एक बढिया और खूबसूरत बाइक बाज़ार में मौजूद है। जिसे देखते ही किसी भी बाइक शौक़ीन का दिल ललचा जाए। बाइक चलाने के शौक़ीन युवा ग्रुप बनाकर रात में सुनसान सड़कों पे रेस लगाने निकलते हैं। और यही सुनसान सड़के बनती है उनके स्टंट दिखाने की जगह। और कभी-कभी यही सड़के इनकी जान की दुश्मन बन जाती हैं और निगल जाती है कई मासूम जिन्दिगियाँ । अपने जरा से शौक और जुनून को पूरा करने के लिए लोग अपनी जिन्दगी तक की परवाह नहीं करते। यहाँ कहने का ये मतलब बिल्कुल भी नही है कि बाइक हमेशा ही खतरनाक होती है...हमारे देश में अगर दुपहिया वाहन की बात करे तो बाइक लोगो की पहली पसंद है ....लाखों लोग रोज़ बाइक पर सफ़र करते हैं...अगर सावधानीपूर्वक चलते हैं तो जान बच जाती है और सही सलामत घर पहुँच जाते हैं...और अगर जरा सी भी लापरवाही हुई तो सीधे अस्पताल या फिर शमशान ही पहुँचते हैं।सड़क दुर्घटनाओं की अगर बात करे तो रोज़ कई लोग इसमें अपनी जान गवां देते हैं। आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटना में मरने वालो की संख्या दुपहिया वाहन वालो की ज्यादा होती है। क्योकि तेज़ स्पीड में अगर ब्रेक लगाये तो संतुलन बिगड़ना लाज़मी है।
अपने बच्चों को तो बाइक का चस्का बिल्कुल न लगने दें। उन्हें इतनी समझ होनी ही चाहिए कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। अपने बच्चे को,जिगर के टुकड़े को जिन्दगी दे न कि मौत का सामान। नहीं तो जिन्दगी भर का दुःख उठाना पड़ सकता है । जिसकी भरपाई नामुमकिन है। अगर कुछ बचता है तो वो है आँखों में पानी.....और कभी न भरने वाला जख्म....
पूजा सिंह आदर्श