Friday 9 April 2010

हमाम में सभी नंगे ...........

कहा जाता है कि पत्रकार समाज का आईना होता अब ये बात कितनी सार्थक है ये बताने की तो अब जरुरत ही नहीं है तो अब पत्रकारिता आईना रह गई है और ही पत्रकार कलम के सिपाही.समाज के इस आईने में अब क्या दिखाई दे रहा है इसे बताने कि आवशयकता नहीं है .चाहे प्रिंट मीडिया हो या फिर इलेक्ट्रोनिक मीडिया हो लिखते हुए भी शर्म आती है कि ये दलालों की मंडी बन के रह गई है,खरीद-फरोख्त का धंधा पूरे जोर-शोर से चल रहा है.हालांकि मैं भी एक पत्रकार हूँ मुझे अपनी कम्युनिटी के बारें में न तो ऐसा कहना चाहिए और न ही लिखना चाहिए लेकिन मैं मजबूर हूँ क्योंकि मैंने अपनी कलम से समझौता नहीं बल्कि वादा किया है कि इससे निकलने वाले शब्दों का कभी भी सौदा नहीं करना है ,मंडी में इसकी बोली नहीं लगानी है।
अब आप किसी भी समय कोई भी चैनल खोल के देख लें सुबह से शाम तक एक ही खबर चला-चला के जब तक उसका दम ना निकाल दें चैनल वालों को चैन नहीं आता,सब टीआरपी का खेल है भाई ..........अगर ऐसा ना करें तो दाल-रोटी के भी लाले पड़ जाएँ .यदि कोई महत्वपूर्ण खबर किसी खास व्यक्ति के बारें में है तो उसे दिखाने से पहले सौदेबाज़ी जरूरी है,सौदा पट गया तो वारे-न्यारे नहीं तो बेटा भुगतो नतीजा फिर तो चैनल वाले उसका ऐसा बैंड बजायेंगे कि उसे भी छठी का दूध याद ना आ जाए तो कहना लेकिन ये बात प्रत्येक चैनल पर लागू नहीं होती.इसके बाद बचता है अख़बार.....अब यहाँ भी सबके उस्ताद बैठे हैं किसी भी ख़बर को इतनी आसानी से छापने वाले तो ये भी नहीं है अगर इन्हें चैनल वालों का भी बाप कहा जाए तो इसमे कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.ख़बर छुपाने के लिए अगर बड़ा सौदा किया जाए तो इन्हें इससे भी गुरेज़ नहीं है।
इस बात का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि क्या हमारे समाज में सिर्फ नकारात्मक घटनाएँ ही घटित होती हैं या सब कुछ बस गलत ही हो रहा है ,अख़बार के जयादातर पन्ने क्राईम की ख़बर से ही भरे होते है या फिर ऐसी ख़बरें होती हैं जिनसे अख़बार को ही फ़ायदा हो,हमारे चारों तरफ कहीं कुछ अच्छा भी तो हो रहा होगा क्या उसे सबके सामने लाना इनका फ़र्ज़ नहीं है,अगर कोई पोजिटिव ख़बर लगाई भी तो मजबूरी में। पर क्या किया जाए वो कहावत है न कि हमाम में तो सभी नंगे है फिर किसी एक को ही दोष क्यों दिया जाए।
मुझे डर है कि राजनीति की तरह ही कहीं पत्रकारिता भी काजल की कोठरी न बन जाए कि लोग इसमें जाने से या करने से ही कतराने लगें ........










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