Wednesday 26 May 2010

बरेली की पहचान झुमका ........

फिल्म मेरा साया में एक गीत था,झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में,ये गीत इतना मशहूर हुआ कि इसने वास्तव में बरेली को उसकी पहचान दिला दी,अब जिससे भी बरेली का जिक्र करो वो तपाक से कहता है कि अच्छा वो झुमके वाली बरेली.......बरेली को झुमके वाली का ख़िताब यूँ ही नहीं मिल गया?गीतकार ने झुमके को बरेली में ही क्यों गिराया....भोपाल या दिल्ली में क्यों नहीं?इसके पीछे भी एक कहानी है....हुआ यूँ कि प्रख्यात कवि स्व.हरिवंश राय बच्चन अपनी पत्नी तेजी बच्चन के साथ शादी पहले इलाहाबाद से बरेली आये थे और प्रख्यात साहित्यकार निरंकार सेवक जी के यहाँ पर रुके थे,हम कह सकतें हैं कि इन दोनों की दोस्ती को शादी तक पहुँचाने में सेवक जी का ही योगदान है। जब तेजी जी,बच्चन जी के साथ यहाँ आयीं तो दोनों ने एक दूसरे को जानने के लिए काफी वक़्त एक साथ बिताया जो बाद में उनकी शादी का कारण भी बना,यहाँ रहते हुए एक दिन तेजी जी के मुंह से सहसा ही निकल गया कि मेरे तो झुमके ही खो गए बरेली के बाज़ार में.........मतलब कि वो यहाँ आकर अपनी सुध-बुध ही खो बैठी,उनके कान से झुमका गिर गया और उन्हें खबर तक नहीं हुई। धीरे-धीरे यह बात चर्चा में आयी फिर रज़ा मेहदीं अली खान ने इस घटना को अपने बोल दिए,आशा भोंसले ने स्वर दिया और मदन मोहन ने अपना संगीत देकर इस गीत को सदा के लिए अमर कर दिया। तो ये कहानी है बरेली के झुमके के पीछे.........वैसे तो बरेली में और भी बहुत कुछ ऐसा है जो इस शहर की पहचान हो सकता है जैसे विश्व प्रसिद्ध दरगाह-ऐ-आला हज़रत,खानखाहे-नियाजिया,बरेली के पांच कोनो पर विराजमान भगवान् शिव के पांच रूप,धोपेश्वर नाथ,वनखंडीनाथ,मढ़ीनाथ,त्रिवटीनाथ और अलखनाथ इसके आलावा बरेली में कई प्रसिद्ध चर्च हैं जो अपनी सुंदर कला के लिए जाने जातें हैं। बरेली का सुरमा,बरेली का मांजा,पतंग ये भी तो इसकी पहचान हो सकते हैं फिर झुमका ही क्यों?
एक बार एक सज्जन से मेरी बहस हो गई कि आला हज़रत और अलखनाथ के शहर की पहचान भला एक अदना सा झुमका कैसे हो सकता है इस पर मैंने उन्हें जो तर्क दिया उसे सुनकर वह चुप हो गए फिर आगे कुछ नहीं बोल पाए ये हम अपने को श्रेष्ठ और सही साबित करने के लिए नहीं बता रहें हैं बल्कि जो मुझे ठीक लगा वही मैंने उन सज्जन को कहा,कि आला हज़रत हों या फिर अलखनाथ ये सब किसी न किसी मजहब से जुड़े हैं और साम्प्रदायिकता के प्रतीक हैं जबकि झुमका न तो किसी धर्म का है और न ही मज़हब का,ये तो सबका है और किसी का भी हो सकता है, अमीर का,गरीब का,हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख, ईसाई किसी का भी और जो किसी का भी हो सकता हो उसे अपनाने में किसी को भी क्या आपत्ति हो सकती है?
जो सबको प्रिय है वही ईश्वर को भी प्रिय है। इसलिए झुमके से अच्छी पहचान तो बरेली के लिए हो ही नहीं सकती । किसी भी चीज़ के इतिहास बनने के पीछे कुदरत का कोई न कोई मकसद जरूर होता है तभी तो बरेली जैसे सांप्रदायिक और संवेदनशील शहर के लोग इतने अमनपसंद हैंझुमका ही बरेली की असल पहचान है इसमें कोई शक नहीं है और झुमके का वजूद तो कभी मिटा था और कभी मिटेगा ........तभी तो फिल्म मेरा साया में उसे साधना ने गिराया जरूर था लेकिन जा नच ले फिल्म में माधुरी ने उसे उठा भी तो लिया...........इससे बड़ा और क्या प्रमाण होगा कि झुमका ही है बरेली की शान उसकी पहचान...........
पूजा सिंह आदर्श

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