Wednesday 5 May 2010

प्यार कब तक देगा कुर्बानी....आखिर कब तक ?

जो कुछ भी आज हम लिखने जा रहें हैं वो मेरे अपने व्यक्तिगत विचार हैं जरूरी नहीं कि वे सबको सही लगें या सभी उससे सहमत हों,हर किसी का नजरिया अलग-अलग होता है चीजों को समझने का.........
ये इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजिए
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है
कहने को ये बहुत पुराना शेर है और सबने बहुत बार सुना होगा लेकिन आज भी अपनी सार्थकता को कायम रखे हुए है .........
क्योकि प्यार करने वालों के लिए ये आज भी आग का दरिया ही है,इसे बहुत ही कम लोग पार कर पातें हैं।आग का दरिया ये तब भी था जब हीर-राँझा ने और लैला -मजनू ने प्यार किया और अब भी है जब निरुपमा-प्रियभान्शु ने प्यार किया। प्यार करनें वालों के लिए हमने एक अलग सी राय बना रखी कि प्यार करना या किसी को चाहना बहुत गलत काम है और इससे बड़ा कोई पाप नहीं हैप्यार करने वालों को तो हमेशा ही इम्तिहान देना पड़ता है,जो खुश किस्मत होतें हैं वो पास हो जातें हैं और जो बदनसीब होतें हैं उनका प्यार अधूरा ही रह जाता है......ऐसा ही कुछ हुआ दिल्ली में काम करने वाली युवा पत्रकार निरुपमा पाठक के साथ जिसे दूसरी बिरादरी के लड़के के साथ प्यार करने की भारी कीमत चुकानी पड़ी अपनी जान देकर। उसके अपने ही लोगों ने उसे मौत के घाट उतार दिया.......क्या कसूर था उसका इतना ही ना कि उसने प्यार किया था,सच्चा प्यार और वो अपने प्यार को पाना चाहती थी हमेशा -हमेशा के लिए,उसने कभी ये सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसके अपने ही उसके अरमानों का गला घोंट देंगे। दुनिया वालों को ये कतई बर्दाश्त नहीं हुआ कि वो अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन साथी चुने और वो भी दूसरी बिरादरी का।
ऑनर किलिंग का ये कोई नया मामला नहीं है इससे पहले भी कई प्यार करने वाले इसकी भेंट चढ़ चुके हैं। समाज के ठेकेदारों को ये हक पता नहीं किसने दिया कि वो जब चाहें प्यार करने वालों के साथ ये जुल्म कर सकें। कोलकाता का रिजवान मर्डर केस,नितीश कटारा हत्या कांड ये सब प्यार करने और ऑनर किलिंग का ही नतीजा है। इसके आलावा ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि वेस्टन यू.पी में सबसे ज्यादा ऑनर किलिंग के मामले प्रकाश में आते हैं,कहीं दो प्यार करने वालों को जिन्दा जला दिया जाता हैं तो कहीं कुल्हाड़ी से काट दिया जाता है......किस जुर्म में बस प्यार करने के ....खुदा के दिए हुए इस खूबसूरत एहसास को,इस नायब नेमत को लोग पता नहीं क्यों जुर्म मानते हैं। औरों की तो छोड़ो खुद माँ-बाप ही नहीं समझ पाते अपने बच्चों को वो समझतें हैं कि उन्होंने बच्चो को पैदा किया,पढाया लिखाया,पाल पोस कर बड़ा किया तो बच्चे उनकी जागीर हैं उनपर सिर्फ उनका ही हक है,उनकी भावनाओं से हमें क्या लेना-देना। अब तक उनके सारे फैसले वही करतें आये हैं तो फिर शादी जैसा अहम् फैसला वो खुद कैसे कर सकते हैं लेकिन समझना होगा अभिभावकों को कि प्यार कोई जानभूझ कर अपने माता-पिता को नीचा दिखाने के लिए नहीं करता,ये तो बस हो जाता है,इसपर किसी का जोर नहीं चलता।
हम ये नहीं कहते कि भावनाओं में बहकर कोई ऐसा काम करे जिससे माता-पिता का नाम ख़राब हो और उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़े अपने उपर संयम रख कर और मर्यादाओं में रह कर भी प्यार किया जा सकता है ।
समाज के ठेकेदारों और प्यार के दुश्मनों को भी कोई अधिकार नहीं है कि वो उनकी राह में कोई रोड़ा अटकाएं या फिर उनकी जान ले। गलती चाहे जिसकी भी हो,जैसी भी हो लेकिन जान लेने का हक किसी को नहीं है। यहाँ कोई जंगलराज नहीं चल रहा है जब चाहा किसी को भी मार दिया। अगर बच्चों से गलती हो भी गई है तो उसे प्यार से सुधारा भी जा सकता है ,इसके लिए पहल माँ-बाप को ही करनी होगी......प्यार,इश्क,मोहब्बत का वजूद इस दुनिया से ना मिटा है और ना मिटेगा,और जब तक ये कायनात रहेगी तब तक रहेगा,प्यार करने वालों के हौसले भी कम नहीं होंगे क्योंकि.......... प्यार करने वाले कभी डरते नहीं,जो डरतें हैं वो प्यार करते नहीं....इस जज़्बे को अपने दिल में रखने वालों को सलाम....
पूजा सिंह आदर्श

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