Friday 14 May 2010

ममता इतनी निर्मोही भी हो सकती है....

ये बिल्कुल सच साबित हो चुका है कि हम कलयुग में जी रहें हैं,घोर कलयुग में जहाँ अब रिश्तों के कोई मायने नहीं रह गए हैं,हर रिश्ता दम तोड़ता हुआ नज़र रहा हैअभी कुछ ही दिन पहले हम मदर्स डे मना कर अपनी माँ को ये अहसास दिला चुके हैं कि हम उसे कितना प्यार करतें हैं,लेकिन इसके ठीक तीन दिन बाद मेरठ शहर में कुछ ऐसा हो जाता है जो हम सब को सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या इस दुनिया से इंसानियत नाम की चीज़ बिल्कुल ही मिट गई है,क्या हमारे अंदर की सारी भावनाएं मर चुकी हैं। मेरठ के रेलवे स्टेशन की पटरियों पर एक नवजात बच्ची के रोने की आवाज़ सुनकर लोग उस तरफ दौड़तें हैं तो जो मंजर देखने को मिलता है उससे किसी की भी चीख निकल जाए,बच्ची के गले में उसकी नाल लिपटी हुई थी,खून से लथपथ बच्ची रेल की पटरियों के बीच में पड़ी हुई थी और रो-रो कर उसने अपने को हकलान कर लिया था वो बताना चाह रही थी कि उसकी इस दशा की जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि उसकी अपनी माँ है जिसने उसे जन्म देते ही ट्रेन के शौचालय में से नीचे फेक दिया और पलट कर उसकी तरफ एक बार भी नहीं देखा कि उसके उपर कितनी रेलगाड़ियाँ गुज़र जाएँगी तो क्या वो नन्ही सी जान जिन्दा बच पायेगी और हुआ भी ऐसा ही बच्ची के ऊपर से कई ट्रेने निकल गई पर उसे एक खरोंच तक नहीं आयी, वो कहते है न कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। वही हुआ उस नन्ही परी के साथ,परी......यही नाम दिया है उसको बचाने वालों ने।
ये खबर शहर में आग की तरह फैली जिसने भी सुना,उसने परी की माँ को कोसा कि क्या कोई माँ ऐसा कर सकती है? क्या ममता इतनी भी निर्मोही हो सकती है अरे जानवर को भी पता होता है कि ममता क्या होती है अगर उसके बच्चे की तरफ कोई आँख उठाकर देखे तो जानवर भी अपनी जान देने को तैयार हो जाता है पर अपने बच्चे की हर हाल में रक्षा करता है। पर इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि अब हम जानवर से भी गए -गुज़रे हो गए हैं। ऐसा नहीं है कि परी को माँ की गोद नहीं मिली,उसकी अपनी माँ ने उसे भले ही मरने के लिए छोड़ दिया हो लेकिन शहर की एक स्वयं -सेवी संस्था ने परी को अपनाया है अभी तक वही लोग उसकी देख भाल भी कर रहें हैं।परी के लिए शहर के लोगों का बेशुमार प्यार उमड़ रहा है,कोई उसके लिए सुंदर-सुंदर कपडे लाया तो कोई खिलौने लाया,कोई बेबी सोप लाया तो कोई पाउडर। इतना प्यार दे रहें हैं सभी कि उसे अपनी माँ की कमी कभी महसूस न हो। परी को गोद लेने वालों का भी ताँता लगा हुआ है अब तक कई आवेदन आ चुकें है लेकिन संस्था सोच-समझ कर ही किसी जिम्मेदार दंपत्ति को ही परी को सौंपेगी। मासूम परी जिसे दुनिया में आये बस कुछ ही दिन हुए है उसने इनता कष्ट उठा लिया कि उसके दुःख के आगे हर दुःख छोटा है। उसने मन ही मन अपनी माँ से पूछा तो होगा कि माँ तूने मुझे क्यों छोड़ दिया,ऐसी क्या मजबूरी थी तेरे आगे जो तुझे मेरा मोह भी नहीं रोक पाया अगर तू मुझे अपना नहीं सकती थी तो मुझे दुनिया में लाने की क्या जरुरत थी?ये सवाल जिंदगी भर उसकी माँ भी को कचोटता रहेगा, चैन तो उसे भी नहीं मिलेगा।
इस पूरे मामले में दाद देनी होगी मीडिया की,कि उसने इसे महज़ चटपटी खबर बनाकर नहीं छापा बल्कि अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए परी को सही हाथों तक पहुँचाया है इससे देखकर लगता तो है कि पत्रकारिता अभी जिन्दा है,उसमे सांस बाकी है। इसलिए मुझे गर्व है कि मैं भी इस चौथे स्तम्भ का हिस्सा हूँ।

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