Monday 3 October 2011

कन्या पूजन करें लेकिन उसे जीने का हक भी तो दें.....


शारदीय नवरात्र चल रहे हैं,आज अष्टमी है,बहुत सारे लोग आज के दिन उपवास पूरा करके कन्या पूजन करते हैं। छोटी-छोटी कंजकों को लाल चुनरी ओढाकर,उनके पैर छूकर उनको जिमाते हैं। नारी को माँ दुर्गा का रूप माना जाता है। कहा जाता है कि नारी में उतनी ही शक्ति है जिनती कि माँ दुर्गा में ..और है ..इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है। औरत जब अपनी पे आ जाये तो क्या नही कर सकती। इतिहास गवाह है इस बात का कि जब -जब महिलाओं को अग्नि -परीक्षा देनी पड़ी है उसने सिद्ध किया है अपने आपको।लेकिन सवाल ये उठता है कि परीक्षा सिर्फ महिलाओं को ही क्यों देनी पड़ती है ??????और उनसे ही क्यों मांगी जाती है ?? पुरुष क्या धरती पर सदैव महापुरुष या भगवान का रूप लेकर आतें हैं ?? हमारे देश में महिलाओं को देवी का दर्ज़ा दिया जाता है,विभिन्न रूपों में उसकी पूजा होती है।लेकिन इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि जैसा हम कहते हैं ,वैसा करते नहीं हैं। इतिहास में अगर महिलाओं की वीर गाथा मौजूद है तो उनपर हुए अत्याचार भी स्पष्ट देखे जा सकते हैं। और यही दस्तूर आज तक कायम है । नारी की पूजा किए जाने वाले देश में आज उसकी हालत बाद से बदत्तर हो गई है।
देश तरक्की कर रहा है,बहुत कुछ बदलाव भी आया है। आज लड़कियां पढ़-लिख रही हैं ,अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं । मर्दों के वर्चस्व वाले समाज में अपनी जगह बनाने कि कोशिश भी कर रही हैं। ये सब तो ठीक है लेकिन ये सिक्के का बस एक ही पहलू है....दूसरी तरफ वो भयानक तस्वीर है,जिसे कोई देखना ही नही चाहता...चलिए रूबरू करातें हैं आपको इस तस्वीर से। जिस देश में लड़किओं को देवी मानने का दावा किया जाता है ,उसी देश के एक शहर में १०० से ऊपर अजन्मी बच्चियों के भ्रूण मिलते हैं , जिन्हें चील-कौव्वे और कुत्ते नोच-नोच कर खाते हैं। देश का गौरव कही जाने वाली यहाँ कि राजधानी में हर १ घंटे में ३ बलात्कार होतें हैं। लड़किओं और महिलाओं के साथ छेड़खानी किस शहर,किस गली,किस नुक्कड़ पर रोज़ नही होती। घरेलू हिंसा का शिकार होने वाली भी कोई और नही महिलाएं ही होती हैं जो चुपचाप अपने ऊपर होने वाली प्रताड़ना को सहती रहती हैं और ये चुप्पी शायद ही कभी टूटती हो। पढने-लिखने से लेकर जिन्दगी के हर छोटे-बड़े फैसले में कुर्बानी सिर्फ लड़किओं को ही देनी पड़ती है। न उन्हें कानून पता है और न ही अपने अधिकार और न ही कोई उन्हें ये सब बताने की जरुरत समझता है।
अब जहाँ देवी स्वरुप नारी पर इतने अत्याचार हों,उसके साथ इतने अन्याय होते हों,जहाँ उसे जन्म लेने तक की अनुमति न हो...वहां कन्या के रूप में उसकी पूजा करना ढोंग मात्र नही लगता। नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन ही कन्याओं की याद क्यों आती है....कन्या पूजने वालों को ????क्यों बाकि का पूरा साल अपमान और अत्याचार करते हुए ही निकाल देना तो जैसे जन्म सिद्ध अधिकार है हमारा। जब महिलाएं अपने ही देश ,अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है तो फिर आगे कुछ कहना व्यर्थ है। हमें अपने आप को सभ्य कहने का कोई हक नही है अगर हम महिलाओं का सम्मान नहीं कर सकते। हम वास्तव तभी तरक्की करेंगे जब हमारे देश की आधी आबादी यानि महिलाएं बिना किसी डर के ,बिना किसी दवाब के और भयमुक्त वातावरण में जी सकें और खुली हवा में आज़ादी के साथ सांस ले सके। और ये तभी संभव हो सकेगा जब हम अपने अंदर ही बदलाव लायेंगे ,अपनी सोच को बदलेंगे । जब हमें ये अहसास होगा कि औरत भी इंसान है उसकी भी अपनी भावनाएं हैं ,जब उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है तो उसे भी दुःख होता है ।
बच्चियों को जन्म लेने दें,उनकी हत्या न करे ,ये सबसे बड़ा गुनाह है , ये हमें समझना होगा । जैसे हम अपने घर की बहू-बेटियों को इज्ज़त देतें हैं वैसे ही दूसरों की बेटियों को भी दे । इसके लिए जरूरी है कि हम पहले अपने घर की बेटियों को सम्मान दें। उन्हें जीने का हक दें ,अपने सपनो को पूरा करने का हक दें । तभी कन्या पूजन करने का अधिकार है हमें । अन्यथा इस दिखावे की कोई जरुरत नहीं है।
पूजा सिंह आदर्श

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