उसे मेरा बाप मत कहो,वो हैवान है ,वो पापा कहलाने के लायक नहीं है ,उसने मुझे,अपनी बेटी को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा,अपनी इज्ज़त बचाने के लिए मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था इसलिए मैंने अपने बाप के ऊपर तेज़ाब फ़ेंक दिया ,मेरी जगह कोई और लड़की होती तो वो भी यही करती,मुझे अपने किए का कोई अफ़सोस नहीं है,मैंने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए अपने बाप के ऊपर तेज़ाब फ़ेंक दिया और अब मैं खुद ही थाने आ गई हूँ आप जो चाहे मुझे सजा दे दो। ये शब्द हैं मेरठ के लिसाड़ी गेट की रहने वाली सोलह साल की सलमा के जो अपने ही बाप की बदनीयती का शिकार होते-होते बच गई। पुलिस ने युवती के बयान दर्ज कराये हैं और उसके बाप को प्रथमद्रष्टया में दोषी मानते हुए हिरासत में लेने के लिए हॉस्पिटल में पुलिस तैनात की है क्योकि सलमा का बाप जावेद तेज़ाब गिरने के कारण चालीस फीसदी तक झुलस गया है। खैर यहाँ मेरा मकसद कोई न्यूज़ देना नहीं हैं उसके लिए तो अख़बार ही काफी है.........इस घटना के जरिये हम ये बताना चाहते हैं कि हम लड़कियों के जीवन में दो ही रिश्ते सबसे ज्यादा विश्वासपूर्ण होतें हैं एक पिता और दूसरा भाई,इनके आलावा हम किसी पर भी जल्दी भरोसा नहीं करते और ना ही कर सकतें हैं लेकिन यदि रक्षक ही भक्षक बन जाए तो क्या विकल्प बचता है हमारे सामने यही न कि हम भी अपनी पूरी शक्ति के साथ अपनी इज्ज़त की रक्षा करें जैसा की सलमा ने किया। ऐसा ये पहला मामला नहीं है कि किसी बाप ने अपनी बेटी को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा हो,ऐसा बुहत बार हो चुका है। बाप के आलावा कई लड़कियन अपने सगे भाइयों तक की हवस का शिकार बन चुकी हैं।इसके आलावा बलात्कार के ऐसे कई मामले जो इज्ज़त की खातिर खुल ही नहीं पातें हैं,मामा,चाचा,ममेरे,चचेरे,फुफेरे भाई अपनी बहन-बेटियों की इज्ज़त ख़राब कर देतें हैं और लड़की के घर वाले अपनी झूठी इज्ज़त बचाने के लिए उन लोगों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाते,यूनिसेफ की एक रिपोर्ट ये खुलासा करती है कि लड़कियां बाहर वालों की अपेक्षा घरवालों की हैवानियत का शिकार ज्यादा बनती हैं क्योंकि भेडिये तो उनके घर में ही छुपे बैठे हैं।
सवाल ये उठता है कि अपनों से ही अपनों की रक्षा कैसे की जाए? इंसान जानवर हो चुका है कि उसे लड़कियों और महिलाओं में सिर्फ हवस की पिपासा को शांत करने का साधन ही नज़र आता है। बहन-बेटी चाहे किसी की भी क्यों न हो इज्ज़त सबके लिए बराबर होती है और उतनी ही मायने रखती है। ऐसा नहीं होता कि आप सिर्फ अपनी बहन-बेटी को तो बचा कर रखें और दूसरों की बहन-बेटी को गन्दी निगाहों से ताकें।ऐसे मामलों में कोई कुछ नहीं कर सकता ना कोई रिश्तेदार न पुलिस अगर कुछ कर सकतीं हैं तो वो हैं खुद लड़कियां,जैसा की सलमा ने किया उसने अपने हैवान बाप के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि हिम्मत से उसका मुकाबला किया। दाद देनी पड़ेगी लड़की की हिम्मत की अगर सभी लड़कियों में अपनी आत्मरक्षा करने की हिम्मत आ जाए तो कोई दरिंदा ऐसे गन्दी हरकत अपनी तो क्या दूसरे की बेटी के साथ भी करने की हिमाकत नहीं करेगा। और ऐसा भी नहीं है की उसके पुलिस या कानून उसकी मदद नहीं करेंगे,जरूर करेंगे जैसी सलमा की की है। जिसने भी इस घिनौनी हरकत के बारे में सुना उसने ही बोला कि ऐसे बाप को तो बीच चौराहे पर फाँसी दे देनी चाहिए,जो अपनी ही बेटी की इज्ज़त नहीं कर सकता वो दूसरों की बेटी की क्या करेगा?ऐसा इन्सान समाज में रहने लायक नहीं है और न ही उसे खुले भेडिये की तरह शिकार करने के लिए छोड़ देना चाहिए। रिश्तों को कलंकित वाले के लिए इस सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है ।
सामाजिक व नैतिक मूल्यों का इतना पतन हो चुका है कि बस किसी पर भी आँख बंद करके तो बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता रही बात लड़कियों की तो उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से मजबूत बनना होगा तभी काम चलेगा वरना हवस के ये भूखे भेडिये लड़कियों का और भी जीना मुश्किल कर देंगे। इसके लिए तो पहल माता-पिता को ही करनी होगी कि वो अपनी बेटी का साथ दें, हरकदम पर उसका हौसला बढ़ाएं इसके आलावा स्कूल-कालेज में भी लड़कियों को उनके अधिकारों और आत्मरक्षा के बारें में पढाया और बताया जाना चाहिए। इसके साथ ही जो अहम् बात है वो ये कि हमारी बहन-बेटियों को भी अपने अंदर छिपी शक्ति का अहसास होना चाहिए कि वक़्त आने पर वो क्या कर सकतीं हैं,कोई दरिंदा उनकी तरफ नज़र उठा कर भी देखे तो उन्हें माँ काली या माँ दुर्गा बनने में समय न लगे।(सामाजिक दायित्वों के चलते नाम बदल दी गए हैं)
पूजा सिंह आदर्श
सवाल ये उठता है कि अपनों से ही अपनों की रक्षा कैसे की जाए? इंसान जानवर हो चुका है कि उसे लड़कियों और महिलाओं में सिर्फ हवस की पिपासा को शांत करने का साधन ही नज़र आता है। बहन-बेटी चाहे किसी की भी क्यों न हो इज्ज़त सबके लिए बराबर होती है और उतनी ही मायने रखती है। ऐसा नहीं होता कि आप सिर्फ अपनी बहन-बेटी को तो बचा कर रखें और दूसरों की बहन-बेटी को गन्दी निगाहों से ताकें।ऐसे मामलों में कोई कुछ नहीं कर सकता ना कोई रिश्तेदार न पुलिस अगर कुछ कर सकतीं हैं तो वो हैं खुद लड़कियां,जैसा की सलमा ने किया उसने अपने हैवान बाप के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि हिम्मत से उसका मुकाबला किया। दाद देनी पड़ेगी लड़की की हिम्मत की अगर सभी लड़कियों में अपनी आत्मरक्षा करने की हिम्मत आ जाए तो कोई दरिंदा ऐसे गन्दी हरकत अपनी तो क्या दूसरे की बेटी के साथ भी करने की हिमाकत नहीं करेगा। और ऐसा भी नहीं है की उसके पुलिस या कानून उसकी मदद नहीं करेंगे,जरूर करेंगे जैसी सलमा की की है। जिसने भी इस घिनौनी हरकत के बारे में सुना उसने ही बोला कि ऐसे बाप को तो बीच चौराहे पर फाँसी दे देनी चाहिए,जो अपनी ही बेटी की इज्ज़त नहीं कर सकता वो दूसरों की बेटी की क्या करेगा?ऐसा इन्सान समाज में रहने लायक नहीं है और न ही उसे खुले भेडिये की तरह शिकार करने के लिए छोड़ देना चाहिए। रिश्तों को कलंकित वाले के लिए इस सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है ।
सामाजिक व नैतिक मूल्यों का इतना पतन हो चुका है कि बस किसी पर भी आँख बंद करके तो बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता रही बात लड़कियों की तो उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से मजबूत बनना होगा तभी काम चलेगा वरना हवस के ये भूखे भेडिये लड़कियों का और भी जीना मुश्किल कर देंगे। इसके लिए तो पहल माता-पिता को ही करनी होगी कि वो अपनी बेटी का साथ दें, हरकदम पर उसका हौसला बढ़ाएं इसके आलावा स्कूल-कालेज में भी लड़कियों को उनके अधिकारों और आत्मरक्षा के बारें में पढाया और बताया जाना चाहिए। इसके साथ ही जो अहम् बात है वो ये कि हमारी बहन-बेटियों को भी अपने अंदर छिपी शक्ति का अहसास होना चाहिए कि वक़्त आने पर वो क्या कर सकतीं हैं,कोई दरिंदा उनकी तरफ नज़र उठा कर भी देखे तो उन्हें माँ काली या माँ दुर्गा बनने में समय न लगे।(सामाजिक दायित्वों के चलते नाम बदल दी गए हैं)
पूजा सिंह आदर्श
sachmuch bahut hi ghinauna krity
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