मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई।
अगर किसी के हिस्से में माँ आए तो उससे ज्यादा खुशकिस्मत कौन हो सकता है,इस शेर के जरिये शायर यही बात समझाने की कोशिश की है।एक सुखद एहसास जैसी माँ,शीतल जल जैसी माँ,धूप में ठंडी छाँव जैसी माँ और क्या लिखूं माँ के बारें में मेरे पास शब्द नहीं है और न ही मेरी लेखनी में इतनी ताक़त है कि मैं उसके बारें में कुछ लिख सकूँ। माँ के बारें में कई बार और बहुत कुछ लिखा जा चुका है लेकिन फिर भी मैंने उसके लिए कुछ लिखने का प्रयास किया है मुझे विश्वास है कि अगर मुझसे कोई गलती हो जाए तो ईश्वर मुझे माफ़ करेंगे।
माँ शब्द में ऐसा क्या है?जिसे सुनते ही कलेजे में एक अजीब सा अहसास होने लगता है,सब कुछ एक सुखद एहसास से भर जाता है,जिसको न तो जुबान से और न ही लेखनी से बयां किया जा सकता है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इन्सान होगा जिसे अगर उसकी माँ के बारें में बोलने के लिए कहा जाए और उसका गला न रुंधे और आँख न भर आए। माँ वो खूबसूरत अहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। माँ ,जिसे ईश्वर ने अपने समतुल्य बनाया है,हर घर में वो खुद नहीं हो सकता इसलिए माँ को बनाया उसने और अपना दर्जा दिया। माँ को भी वही भावनाएं दी जो खुद ईश्वर में समाहित होतीं हैं,तभी तो कहा जाता है कि माँ के पैरों के नीचे जन्नत होती हैं और ये शाश्वत सत्य है जिस किसी ने भी माँ की पूजा की या उसकी सेवा की समझो उसने ईश्वर को पा लिया और अपनी जिंदगी में सफलता के शिखर को छुआ।
अपने बच्चों के लिए क्या-क्या नहीं करती माँ,कोख में आने से लेकर उसके जन्म तक,जन्म से लेकर बड़े होने तक सिर्फ त्याग और बलिदान ही करती है माँ। अपना सुख-चैन,अपनी नींद,अपनी खुशियाँ,अपनी इच्छाएं सब कुछ अपने बच्चो पर वार देती है अपने बच्चे की तकलीफ को बिना बताये ही समझ जाती है माँ। वह अपने बच्चे को डांटे-फटकारे या मारे पर उसके प्राण तो उसी में बसे होतें हैं। माँ की प्रशंसा में कुछ कहते ही नहीं बनता है,माँ तो बस माँ होती है ,एक पूरी दुनिया अपने अंदर समेटे हुए। क्या हम कभी ईश्वर की प्रशंसा करते हैं.....नहीं न ....तो फिर माँ की कैसे कर सकतें हैं,जिसमे साक्षात् ईश्वर का वास हो उसे पूजने के आलावा कोई विकल्प ही नहीं है। बच्चा जब पहला शब्द बोलता है तो उसके मुंह से माँ ही निकलता है,यह ईश्वर का ही संकेत है कि सबसे पहले माँ का नाम लिया जाए ,तभी तो पिता से भी पहले माँ का ही नाम आता है। माँ के विषय में बार-बार यह कहना कि माँ के जैसा कोई नहीं है ....इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि माँ जैसा तो वास्तव में कोई नहीं है। औलाद को नौ महीने तक अपने खून से सींचना कोई मामूली बात नहीं है,यह वरदान सिर्फ औरत को मिला है। माँ बनकर ही उसका अस्तित्व पूरा होता है ,इसके लिए जरूरी नहीं कि बच्चे को जन्म ही दिया जाए किसी भी बच्चे की परवरिश करके अपनी ममता उसपर लुटाना भी माँ का ही रूप है।
माँ हमेशा दूसरों के बारें में ही सोचती है अपने लिए तो उसके पास कभी समय ही नहीं होता इस लिए मदर्स डे के रूप में माँ को समर्पित एक दिन बनाया गया जिससे हम उसके लिए कुछ ख़ास कर सकें,वैसे तो सारे ही दिन माँ के नाम हैं लेकिन फिर भी.... एक दिन उसे ढेर साड़ी खुशियाँ देने का। क्या सिर्फ एक ही दिन होना चाहिए माँ के लिए ये एक विचारणीय प्रश्न है दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो माँ का सम्मान नहीं करते उसे दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर कर देते हैं,उन लोगों को शायद पता नहीं कि वो कितना बड़ा गुनाह कर रहें हैं जिसकी सजा उन्हें इसी दुनिया में मिलेगी। मदर्स डे मनाना तभी सार्थक होगा जब माँ को इज्ज़त और प्यार दें क्योकि माँ जैसा तो कोई है ही नहीं एक माँ ही तो है जो हमसे निस्वार्थ प्यार करती है....मेरा अनुरोध है कि एक सवाल अपने आप से जरूर पूछें कि क्या आप अपनी माँ से प्यार करतें हैं?
पूजा सिंह आदर्श
माँ शब्द में ऐसा क्या है?जिसे सुनते ही कलेजे में एक अजीब सा अहसास होने लगता है,सब कुछ एक सुखद एहसास से भर जाता है,जिसको न तो जुबान से और न ही लेखनी से बयां किया जा सकता है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इन्सान होगा जिसे अगर उसकी माँ के बारें में बोलने के लिए कहा जाए और उसका गला न रुंधे और आँख न भर आए। माँ वो खूबसूरत अहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। माँ ,जिसे ईश्वर ने अपने समतुल्य बनाया है,हर घर में वो खुद नहीं हो सकता इसलिए माँ को बनाया उसने और अपना दर्जा दिया। माँ को भी वही भावनाएं दी जो खुद ईश्वर में समाहित होतीं हैं,तभी तो कहा जाता है कि माँ के पैरों के नीचे जन्नत होती हैं और ये शाश्वत सत्य है जिस किसी ने भी माँ की पूजा की या उसकी सेवा की समझो उसने ईश्वर को पा लिया और अपनी जिंदगी में सफलता के शिखर को छुआ।
अपने बच्चों के लिए क्या-क्या नहीं करती माँ,कोख में आने से लेकर उसके जन्म तक,जन्म से लेकर बड़े होने तक सिर्फ त्याग और बलिदान ही करती है माँ। अपना सुख-चैन,अपनी नींद,अपनी खुशियाँ,अपनी इच्छाएं सब कुछ अपने बच्चो पर वार देती है अपने बच्चे की तकलीफ को बिना बताये ही समझ जाती है माँ। वह अपने बच्चे को डांटे-फटकारे या मारे पर उसके प्राण तो उसी में बसे होतें हैं। माँ की प्रशंसा में कुछ कहते ही नहीं बनता है,माँ तो बस माँ होती है ,एक पूरी दुनिया अपने अंदर समेटे हुए। क्या हम कभी ईश्वर की प्रशंसा करते हैं.....नहीं न ....तो फिर माँ की कैसे कर सकतें हैं,जिसमे साक्षात् ईश्वर का वास हो उसे पूजने के आलावा कोई विकल्प ही नहीं है। बच्चा जब पहला शब्द बोलता है तो उसके मुंह से माँ ही निकलता है,यह ईश्वर का ही संकेत है कि सबसे पहले माँ का नाम लिया जाए ,तभी तो पिता से भी पहले माँ का ही नाम आता है। माँ के विषय में बार-बार यह कहना कि माँ के जैसा कोई नहीं है ....इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि माँ जैसा तो वास्तव में कोई नहीं है। औलाद को नौ महीने तक अपने खून से सींचना कोई मामूली बात नहीं है,यह वरदान सिर्फ औरत को मिला है। माँ बनकर ही उसका अस्तित्व पूरा होता है ,इसके लिए जरूरी नहीं कि बच्चे को जन्म ही दिया जाए किसी भी बच्चे की परवरिश करके अपनी ममता उसपर लुटाना भी माँ का ही रूप है।
माँ हमेशा दूसरों के बारें में ही सोचती है अपने लिए तो उसके पास कभी समय ही नहीं होता इस लिए मदर्स डे के रूप में माँ को समर्पित एक दिन बनाया गया जिससे हम उसके लिए कुछ ख़ास कर सकें,वैसे तो सारे ही दिन माँ के नाम हैं लेकिन फिर भी.... एक दिन उसे ढेर साड़ी खुशियाँ देने का। क्या सिर्फ एक ही दिन होना चाहिए माँ के लिए ये एक विचारणीय प्रश्न है दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो माँ का सम्मान नहीं करते उसे दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर कर देते हैं,उन लोगों को शायद पता नहीं कि वो कितना बड़ा गुनाह कर रहें हैं जिसकी सजा उन्हें इसी दुनिया में मिलेगी। मदर्स डे मनाना तभी सार्थक होगा जब माँ को इज्ज़त और प्यार दें क्योकि माँ जैसा तो कोई है ही नहीं एक माँ ही तो है जो हमसे निस्वार्थ प्यार करती है....मेरा अनुरोध है कि एक सवाल अपने आप से जरूर पूछें कि क्या आप अपनी माँ से प्यार करतें हैं?
पूजा सिंह आदर्श
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