Thursday, 24 March 2011

घी हमेशा टेढ़ी ऊँगली से ही निकलता है.....

जीवन एक सपूर्ण पाठशाला है...इस बात से हम और आप इंकार नहीं कर सकते क्योकि इस पाठशाला में हमें रोज कुछ कुछ सीखने को मिलता हैजिन्दगी आपको हर रोज एक नया अनुभव कराती है,,जो आगे चलकर आपके जीवन में कही कहीं काम सकता हैऐसा ही एक अनुभव आज हमने भी किया जो हमें जिन्दगी भर याद रहेगा। दरअसल हुआ कुछ यूँ कि....हमने एक सरकारी नौकरी के लिए आवेदन पत्र भरा जिसके लिए मुख्य चिकित्साधिकारी के द्वारा एक फिटनेस प्रमाण-पत्र बनवाना जरूरी था और इसे बनवाने के लिए हम जा पुहंचे जिला चिकित्सालय जहाँ पहुँचते ही हमारी रूह फ़ना हो गई.... देखा कि बेरोजगारों की इतनी भीड़ जमा है जो अपना फिटनेस प्रमाण -पत्र बनवाने आये हैं। एक बार को तो लगा कि भैया निकल लो यहाँ से.... यहाँ कुछ नहीं होने वाला...लेकिन फिर अपने आप को दिलासा दी और खुद का हौसला बढाया कि ऐसे हिम्मत हारने से तो काम नहीं चलेगा। फिर लोगो से पूछते-पाछते परचा बनवाया और लग गए खुद को फिट साबित करवाने की लाइन में...भीड़ को चीरते हुए आखिर हम डाक्टर साहब तक पहुँच ही गए और लगवा लिया ठप्पा अपने पर्चे पर कि हम बिल्कुल स्वस्थ हैं। इसके बाद दूसरा पड़ाव था... नेत्र विभाग में जाँच करवाने का लेकिन .... थोड़े से कष्ट के बाद हमने इस पड़ाव को भी पार कर लिया। आगे की डगर थोड़ी, नहीं बहुत कठिन थी जहाँ करानी थी अपनी नाप-तोल...वहां का द्रश्य देखने के बाद अच्छे -अच्छों की हिम्मत न हो कि उस जगह घुस पाए। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि उसे नियंत्रित करने के लिए पुलिस फोर्स बुलानी पड़ी और लड़के-लड़किओं की अलग-अलग लाइन बनवा दी गई। जैसे-तैसे करके हम भी लाइन में लग गए। धक्का-मुक्की ,नोक-झोंक के बीच लाइन रेंग-रेंग कर खिसक रही थी,लग रहा था कि मानो जस की तस है लाइन....जैसे जैसे हमें अपनी मंजिल करीब आती दिखी थोड़ी तस्सली मिली कि अब हमारा काम बन जायेगा लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि अगले ही पल क्या होगा ये नहीं कहा जा सकता????शायद हमने भी नहीं सोचा था कि हमें भी कुछ ऐसा करना पड़ जायेगा। हुआ कुछ यूँ कि जब लाइन आगे बढ रही थी इसी बीच देखा कि एक-दो सिफारशी लोगों ने अपने जानने वालो को अंदर भेज दिया वहां सुबह से लाइन में कड़ी लड़किओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया,देखा तो मैंने भी था लेकिन नजरंदाज़ कर दिया और लड़किओं को भी शांत रहने को कहा लेकिन सब्र का बांध तब टूटा जब एक वर्दी धारी को अपनी वर्दी का फ़ायदा उठाते हुए देखा,उसने अपनी रिश्तेदार को चुपके से अंदर भेज दिया जब हमने इसका विरोध तो उसने बदतमीज़ी करनी शुरू कर दी.... फिर क्या था ???उसकी इस हरकत ने हमें अपना आपा खोने पर मजबूर कर दिया क्योंकि वर्दी वालों को कुछ गलत करते देख बर्दाश्त नहीं होता ....उसे सबक सिखाना जरूरी था।इस लिए हमने चढ़ाई अपनी आस्तीने और कूद गए मैदान-ऐ-जुंग में। इसके लिए मुझे न चाहते हुए भी अपने फ़ोन को कष्ट देना पड़ा और उसकी शिकायत उसके सिनिअर अफसर से करनी पड़ी। वहां इस बात को लेकर हंगामा खड़ा हो गया सभी ने मेरा साथ दिया। उस वर्दी धारी के तो जैसे होश ही उड़ गए। उसे भी लगा तो होगा कि उसने किस मुसीबत को को न्यौता दे दिया। जब उसे लगा कि बेटा तू गलत फँस गया तो वहां से खसक लिया। तब कहीं जाकर वहां कड़ी लड़किओं को शांति मिली और मुझे भी इसका फ़ायदा यह हुआ कि उसके बाद बस लड़किओं का ही नंबर आया। ऐसा करना या वहां कोई हंगामा करना मेरा मकसद नहीं था लेकिन हालात ने मजबूर कर दिया। इसके बाद मेरी आत्मा को जो संतोष मिला उसका कोई मोल नहीं है।
यहाँ ये सब लिखने का मेरा सिर्फ ये मकसद है कि अपने देश को आदत पड़ चुकी है टेढ़ी ऊँगली से घी निकलवाने की..जब तक आप सीधे बने रहो तब तक हर कोई आपको कुचल कर आगे बढ जाना चाहता है लेकिन जहाँ आपने अपनी आँखें टेढ़ी की वही सब सीधे हो जातें हैं। लड़किओं को कमजोर समझने की भूल करने वालों को को हम बता देना चाहतें हैं की बदल लें अपनी सोच इसी में समझदारी है वरना इसी तरह मुंह की खानी पड़ेगी। और थोड़ी सी मेहरबानी करें अपने देश पर कि उसे और कलंकित न करे इस तरह की शर्मनाक हरकत करके।
पूजा सिंह आदर्श

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