सावन का महीना आते ही पूरा माहौल शिवमय हो जाता है.....अगर कुछ सुनाई देता है तो वो है हर-हर महादेव की गूँज। वैसे तो भगवान भोले नाथ पूरे भारत वर्ष में बारह महीने ही पूजे जातें हैं लेकिन सावन में इनका महत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। कुंवारी लड़किओं से लेकर बुजुर्ग तक सब सावन के महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने में लीन रहतें हैं।कुछ लोग सिर्फ सावन के सोमवार को ही जल चढ़ाते हैं और कुछ लोग पूरे सावन ही शिवालयों में जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करतें हैं।सावन लगते ही अगर कुछ विशेष होता दिखाई देता है तो वह है कांवड़ यात्रा। कांवड़ लाने के लिए शिव के भक्त पूरे साल इंतजार करतें हैं कि कब वो हरिद्वार के लिए प्रस्थान करेंगे और कठिन यात्रा को पैदल पार करके भगवान भोले नाथ पर चढाने के लिए जल लेकर आएंगे। कुछ लोग तो गंगोत्री तक से भी जल लेकर आतें हैं। प्.उत्तर प्रदेश समित दिल्ली,हरियाणा,राजस्थान तक में कांवड़ लाने का प्रचलन है।इस समय कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी हैं और अपनी चरम सीमा पर चल रही है और आठ अगस्त को पड़ने वाली सावन की शिवरात्रि को भोले नाथ के जलाभिषेक के साथ ही समाप्त होगी। शिवरात्रि से एक दिन पहले ही लाखों श्रद्धालु अपने मुकाम पर पहुँच जातें हैं।
ऐसा नहीं है कि कांवड़ यात्रा कोई नयी बात है यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है फर्क बस इतना है कि पहले इक्का-दुक्का शिव भक्त ही कांवड़ में जल लाने की हिम्मत जुटा पाते थे लेकिन पिछले ५-७ सालों में ऐसा क्या हुआ कि हर साल जल लाने के लिए शिव भक्तों कि संख्या बढती ही जा रही है। इक्का-दुक्का से सैंकड़ों फिर हजारों और अब लाखों,साल दर साल कांवड़ लाने वालों की तादात बढती ही जा रही है। क्या इस कलयुग में भगवान को प्रसन्न करने और पुण्य कमाने का यही एक तरीका रह गया है??????............कांवड़ यात्रा को सफल और सुरक्षित बनाने के लिए भारी तादात में पुलिस और प्रशासन लगा हुआ है। लाखों की संख्या में पहुँचने वाले श्रधालुओं की सुरक्षा प्रशासन के लिए चुनौती बनी हुई है।
कांवड़ लाने वालों की संख्या प्रति वर्ष जिस रफ़्तार से बढ़ रही है वो एक सोचनीय विषय है ये वाकई पुण्य कमाने का जरिया है या फिर कुछ और........कही कांवड़ लाने की आड़ में कोई और धंधा तो नहीं चल रहा। हर साल नारकोटिक्स विभाग की नजर रहती है कांवड़ लाने वालों पर। सबको पता है कि कांवड़ की आड़ में हर साल करोड़ों रूपये के नशे का कारोबार होता है। कांवड़ में छुपा कर अफीम,भांग,चरस की तस्करी की जाती है। हथियार भी छुपा कर इधर से उधर किए जाते है। कांवड़ के बहाने ये कारोबार खूब फल-फूल रहा है। जानते सब हैं पर मजाल है कि कोई कांवड़ को हाथ भी लगा दे,चेक करना तो दूर की बात है। धर्म की आड़ लेकर खुले-आम गलत काम होता है पर हम कुछ नहीं कर सकते क्योंकि आस्था सब पे भारी होती है।धर्म के नाम पर कुछ भी आसानी से किया जा सकता है ये हमारे देश की खासियत है। धर्म के नाम पर हम किसी को भी और कहीं भी बेवक़ूफ़ बना सकतें हैं इसका जीवंत उदाहरण है कांवड़ यात्रा। अब इसमें एक नयी बात और जुड़ गई है और वो हैं.....महिलाएं.......पहले इनका कांवड़ यात्रा से दूर-दूर तक कोई तक कोई वास्ता नहीं होता था,लेकिन अब महिलाएं भी पीछे नहीं है कांवड़ लाने में। जब महिलाएं जाएँगी तो लाज़मी है कि बच्चे भी जायेंगे। महिलाओं और बच्चों की आड़ में भी ये धंधा जोरों पर चलता है। ये काम करने वालों को पता है की महिलाओं को हाथ लगाने वालों की क्या दशा होगी, बस इसी बात का ये लोग फ़ायदा उठाते हैं। अगर कांवड़ जरा सी भी खंडित हो जाए तो बवाल होते भी देर नहीं लगती,श्रद्धालु आगजनी,पथराव और मारपीट करने में जरा भी देर नहीं लगाते। कहने का मतलब ये है कि कांवड़ की आड़ में जो लोग ये धंधा कर रहें हैं उनको प्रशासन खुद ही बढ़ावा दे रहा है,इनको रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है।
गलत काम जो हो रहा है वो तो है ही लेकिन कांवड़ यात्रा से पर्यावरण को जो भारी नुकसान होता है उसका जिम्मेदार कौन है?????हर साल लाखों श्रद्धालु जल लेने हरिद्वार पहुंचतें हैं। इतने लोगों के कारण गंगा तो मैली होती है पूरा वातावरण भी दूषित हो जाता है। जगह-जगह कैंप लगने के कारण झूठे पत्तलों के ढेर,खुले में मल-मूत्र करने के कारण फैलने वाली दुर्गन्ध से आम लोगों का जीना दूभर हो जाता है,किन्तु इन सब के बारें में कौन सोचता है। फिर वही बात आ जाती है कि आस्था सब पर भारी है....धर्म की आड़ में गलत काम हमेशा से ही होता आया है ये कोई नयी बात तो है नहीं.....लेकिन लोगों को ये तो सोचना ही चाहिए कि कम से कम धर्म की आड़ में तो ये सब न करें.....पुण्य कमाने के तो और भी बहुत से तरीके हैं....पुण्य ही कमाना है तो देश और समाज की सेवा करके ही कमा लो तो वास्तव में पुण्य ही मिलेगा........
पूजा सिंह आदर्श
ऐसा नहीं है कि कांवड़ यात्रा कोई नयी बात है यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है फर्क बस इतना है कि पहले इक्का-दुक्का शिव भक्त ही कांवड़ में जल लाने की हिम्मत जुटा पाते थे लेकिन पिछले ५-७ सालों में ऐसा क्या हुआ कि हर साल जल लाने के लिए शिव भक्तों कि संख्या बढती ही जा रही है। इक्का-दुक्का से सैंकड़ों फिर हजारों और अब लाखों,साल दर साल कांवड़ लाने वालों की तादात बढती ही जा रही है। क्या इस कलयुग में भगवान को प्रसन्न करने और पुण्य कमाने का यही एक तरीका रह गया है??????............कांवड़ यात्रा को सफल और सुरक्षित बनाने के लिए भारी तादात में पुलिस और प्रशासन लगा हुआ है। लाखों की संख्या में पहुँचने वाले श्रधालुओं की सुरक्षा प्रशासन के लिए चुनौती बनी हुई है।
कांवड़ लाने वालों की संख्या प्रति वर्ष जिस रफ़्तार से बढ़ रही है वो एक सोचनीय विषय है ये वाकई पुण्य कमाने का जरिया है या फिर कुछ और........कही कांवड़ लाने की आड़ में कोई और धंधा तो नहीं चल रहा। हर साल नारकोटिक्स विभाग की नजर रहती है कांवड़ लाने वालों पर। सबको पता है कि कांवड़ की आड़ में हर साल करोड़ों रूपये के नशे का कारोबार होता है। कांवड़ में छुपा कर अफीम,भांग,चरस की तस्करी की जाती है। हथियार भी छुपा कर इधर से उधर किए जाते है। कांवड़ के बहाने ये कारोबार खूब फल-फूल रहा है। जानते सब हैं पर मजाल है कि कोई कांवड़ को हाथ भी लगा दे,चेक करना तो दूर की बात है। धर्म की आड़ लेकर खुले-आम गलत काम होता है पर हम कुछ नहीं कर सकते क्योंकि आस्था सब पे भारी होती है।धर्म के नाम पर कुछ भी आसानी से किया जा सकता है ये हमारे देश की खासियत है। धर्म के नाम पर हम किसी को भी और कहीं भी बेवक़ूफ़ बना सकतें हैं इसका जीवंत उदाहरण है कांवड़ यात्रा। अब इसमें एक नयी बात और जुड़ गई है और वो हैं.....महिलाएं.......पहले इनका कांवड़ यात्रा से दूर-दूर तक कोई तक कोई वास्ता नहीं होता था,लेकिन अब महिलाएं भी पीछे नहीं है कांवड़ लाने में। जब महिलाएं जाएँगी तो लाज़मी है कि बच्चे भी जायेंगे। महिलाओं और बच्चों की आड़ में भी ये धंधा जोरों पर चलता है। ये काम करने वालों को पता है की महिलाओं को हाथ लगाने वालों की क्या दशा होगी, बस इसी बात का ये लोग फ़ायदा उठाते हैं। अगर कांवड़ जरा सी भी खंडित हो जाए तो बवाल होते भी देर नहीं लगती,श्रद्धालु आगजनी,पथराव और मारपीट करने में जरा भी देर नहीं लगाते। कहने का मतलब ये है कि कांवड़ की आड़ में जो लोग ये धंधा कर रहें हैं उनको प्रशासन खुद ही बढ़ावा दे रहा है,इनको रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है।
गलत काम जो हो रहा है वो तो है ही लेकिन कांवड़ यात्रा से पर्यावरण को जो भारी नुकसान होता है उसका जिम्मेदार कौन है?????हर साल लाखों श्रद्धालु जल लेने हरिद्वार पहुंचतें हैं। इतने लोगों के कारण गंगा तो मैली होती है पूरा वातावरण भी दूषित हो जाता है। जगह-जगह कैंप लगने के कारण झूठे पत्तलों के ढेर,खुले में मल-मूत्र करने के कारण फैलने वाली दुर्गन्ध से आम लोगों का जीना दूभर हो जाता है,किन्तु इन सब के बारें में कौन सोचता है। फिर वही बात आ जाती है कि आस्था सब पर भारी है....धर्म की आड़ में गलत काम हमेशा से ही होता आया है ये कोई नयी बात तो है नहीं.....लेकिन लोगों को ये तो सोचना ही चाहिए कि कम से कम धर्म की आड़ में तो ये सब न करें.....पुण्य कमाने के तो और भी बहुत से तरीके हैं....पुण्य ही कमाना है तो देश और समाज की सेवा करके ही कमा लो तो वास्तव में पुण्य ही मिलेगा........
पूजा सिंह आदर्श
चलिए कांवर यात्रा को पुण्य ही कहने दीजिए!
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