क्या होता जा रहा है हम लोगों को कि अमन और चैन की जिंदगी रास ही नहीं आती हमे.अभी पिछले दिनों बरेली जैसे शांतिप्रिय शहर में जो दंगे हुए,आगजनी हुई, करफू लगाया गया वह बिल्कुल अप्रत्याशित घटना है .बरेली का इतिहास पलट कर देख लीजिये जो कभी भी साम्प्रदायिक दंगो की हवा भी उसे लगी हो पर अब ऐसा भी हो गया.बरेली भी अलीगढ,मेरठ और मुरादाबाद की तरह ही मुस्लिम बाहुल्य शहर है लेकिन आज तक भी सांप्रदायिक आग कि लपटें उसे छू भी नहीं पायीं फिर ना जाने किसकी नज़र लग गई कि बरेली का माहौल ख़राब हो गया.आला हज़रत और पांच नाथों के शहर को भी नहीं बक्शा अमन के इन दुश्मनों ने.जिस शहर के बाशिंदे आपस में इतने घुल-मिल कर और प्यार से रहते हों वहां कि फिजां ख़राब हो जाए ये बात कुछ हजम नहीं होती.किसी कि सुनी सुनाई बात पर यकीन नहीं किया जा सकता लेकिन जब आपने स्वयं अनुभव किया हो तो ........मैंने अपनी जिंदगी के सात अहम् साल गुजारें हैं उस शहर में लेकिन कभी भी ये महसूस नहीं किया कि इस शहर में हम महफूज़ नहीं हैं.आज भी इस शहर कि जमी पर पैर रखते ही अहसास हो जाता है अपनेपन का फिर ये कैसे मान लिया जाए कि बरेली एक सांप्रदायिक शहर है.जब कभी भी इस शहर पर कोई मुसीबत आई है तो यहाँ के लोगों ने मिल- जुल कर और डट कर उसका सामना किया है और मुझे पूरी उम्मीद है कि आगे भी वो ऐसा ही करेंगे ताकि कोई बरेली जैसे अमन पसंद शहर कि फिजां ख़राब ना कर सके.इंशाअल्लाह
पूजा सिंह
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