Saturday 28 August 2010

ईव टीजिंग.....महिलाओं के लिए अभिशाप


हमारे देश में जितनी मुश्किलों और तकलीफों का सामना महिलाओं को करना पड़ता है उतना शायद ही किसी और को करना पड़ता होगा....हर कदम पर कठिनाइयाँ और हर मोड़ पे चुनौतियाँ तैयार रहती है इनका इम्तिहान लेने के लिए।हमारे समाज में जहाँ लड़किओं के लिए समस्याओं का अम्बार लगा है.......उन्ही समस्याओं में से एक है ईव टीजिंग यानि छेड़खानी.....ये वो समस्या या यूँ कहे कि लड़किओं के लिए वो अभिशाप है जिससे लड़किओं को तकरीबन रोज़ ही दो-चार होना पड़ता है। शायद ही कोई ऐसी लड़की या महिला होगी जिसे इस शर्मिंदगी से न गुजरना पड़ा हो। हमारे देश और समाज में ऐसे मनचलों की कोई कमी नहीं है जो लड़किओं को अपनी निजी संपत्ति समझतें हैं। स्कूल- कालेज या सिनेमा के जब छूटने का समय होता है तब देखिये कि शोहदों का कैसा जमावड़ा लगता है बाहर.....लड़किओं को तो ऐसे घूरते हैं कि जैसे वो इनके बाप की जागीर हैं,अश्लील कमेन्ट पास करना,सीटी मारना,आँख मारना,लड़किओं का पीछा करना,उनका रास्ता रोकना जैसे दुष्कर्मों का तो जैसे इन शोहदों को लाइसेन्स मिला हुआ है और वो भी माँ-बाप ने दे रखा है कि जाओ....छेड़ो लड़किओं को.....कोई तुम्हे रोकने-टोकने वाला नहीं है। जितनी बेखौफी से ये लोग लड़किओं को छेड़ते हैं उसे देखकर तो यही लगता है कि घरवालों ने नहीं बल्कि सरकार ने ही इन्हें इजाज़त दे रखी है। महिलाओं के साथ पुरुषों द्वारा किया जाने वाला यह शर्मनाक बर्ताव कभी-कभी इतना भयानक होता है कि इससे तंग आकार लड़कियां खुदखुशी तक कर लेती हैं। उन्हें इस कठोर निर्णय तक पहुँचाने के लिए कौन जिम्मेदार है?
कोई यह नहीं देखता या सोचता कि लड़की ने ऐसा क्यों किया होगा? उल्टा उस पर ही आक्षेप लगा देतें हैं कि लड़की का ही चाल-चलन ठीक नहीं होगा तभी उसने ऐसा किया लेकिन सच्चाई जानने की तो कोई कोशिश भी नहीं करता। और कोई करे भी तो क्यों??????इस समाज के ठेकेदार ही हैं...मर्द....अपने को मर्द तो बड़ी शान से कहतें हैं पर कर्म तो चूहों जैसा करतें हैं..........अब आप ही बताइए कि किसी भी लड़की को छेड़ के बाइक या साईकिल पर भाग जाना कहाँ की मर्दानगी है.....अगर वास्तव में मर्द के बच्चे हो तो वही रुक कर दिखाओ....अगर लड़कियां तुम्हे छठी का दूध का न याद दिला दें तो मेरा नाम बदल देना .....किसी को अश्लील बात कहकर भाग जाने से बड़ा बुझदिली का काम कोई नहीं है।
लड़किओं के साथ छेड़खानी बहुत ही आम बात हो गई है....पुलिस और प्रशासन चाहे कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन इस समस्या से छुटकारा मिलना तो दूर की बात है, ये समस्या कम तक नहीं हुई है।महिला पुलिस को सादे कपड़ों में स्कूल-कालेज और सिनेमाओं के बाहर तैनात कर के तथा ऑपरेशन दीदी भी चला कर देख लिया पर नतीजा सिफर ही निकला। अब इस मुसीबत से कैसे निपटा जाए या इन मनचलों को कैसे सबक सिखाया जाए.....मुझे तो इस का एक ही हल दिखाई देता है कि हर लड़की अपनी सुरक्षा खुद करे और अपनी पुलिस खुद बने। अपने को शारीरिक व मानसिक दोनों तरह से मजबूत बनाये और जब कोई मनचला उसे छेड़ने कि जुर्रत करे तो चुप-चाप सहने की बजाय उसका मुंहतोड़ जवाब दे। अभी तक ये शोहदे यही समझतें हैं कि इन लड़किओं के बसकी कुछ नहीं है, ये तुम्हारी हर बदतमीजी बिना कोई विरोध किए सहती रहेंगी क्योकि लड़कियां इनकी प्राइवेट प्रोपर्टी हैं। लेकिन अब इन्हें भी यह याद दिलाना जरूरी है कि इनके घरों में भी माँ-बहने हैं और किसी दूसरे की बहन -बेटियों को छेड़ने से पहले दस बार सोचो।लड़कियां न तो शारीरिक रूप से कमजोर हैं और न ही मानसिक रूप से ये बात इन मनचलों को समझानी होगी....ऐसे नहीं तो वैसे.....बस चुप रहने की बजाय उसका सामना करना होगा....क्योंकि ये महिलाओं के सम्मान की लड़ाई है और अपने सम्मान की रक्षा करने का सबको अधिकार है। जो महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाएगा उसे उसका परिणाम भी भुगतना होगा।
पूजा सिंह आदर्श

Tuesday 17 August 2010

क्या हम वाकई आज़ाद है...यही मायने हैं आज़ादी के?????



अभी दो दिन पहले ही हमने अपनी आज़ादी की ६३वीं सालगिरह मनाई है, इस मौके पर देश के सर्वश्रेष्ठ लोगों ने अपनी तमाम उपलब्धियां भी गिनवा दी कि अब तक हमारे देश को इन लोगों ने क्या दिया है और देश ने कितनी तरक्की की है............अब इन लोगों के इस दमदार दावे में कितना दम हैं इस पर एक बड़ा सवालिया निशान है????क्या हम आज भी सच में आज़ाद हैं और खुली आज़ाद हवा में सांस ले रहे हैं????ये एक विचारणीय प्रश्न है........क्या सिर्फ अंग्रेजों की दासता से मुक्ति पा लेने को ही आज़ादी कहते हैं?जिन लोगों के संघर्ष ने हमें उस नरक से बाहर निकाला जिनके अमूल्य बलिदान की बदौलत ही हम आज अपने वजूद को कायम रखे हुए हैं क्या वाकई में हम उनके प्रति सच्ची श्रधांजलि अर्पित करते हैं या उनको याद करने का ढोंग मात्र करतें हैं।हम कितना भी चिल्ला-चिल्ला के यह कह लें की हम आज़ाद हैं और देश तरक्की कर रहा है,हम उन्नति की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहें हैं लेकिन सच वही है ...ढ़ाक के तीन पात......
केवल कह देने भर से या प्रगति का ढोल बजाने से ये सच हो जाएगा कि जैसा सपनो का भारत हमारे पूर्वजों ने सोचा था क्या ये भारत वैसा ही है ?.....नेहरु,गाँधी,शास्त्री,सुभाष के देश की क्या हालत हो गई है। अगर हमारे देश के कर्ता-धर्ता ये सोचते हैं कि हमारे देश में तो सब ठीक चल रहा है और सब आज़ादी का जश्न मन रहें हैं तो ये सरासर गलत सोचतें हैं और बहुत बड़ी गलत फहमी का शिकार हैं। जिस देश में आज भी लोग अशिक्षित हैं,बेरोजगार हैं,अन्धविश्वासी हैं.रुढ़िवादी हैं,जहाँ आज भी लोगों को पीने का पानी नहीं मिलता,बिजली नहीं मिलती,यहाँ तक की बुनियादी सुविधा रोटी-कपडा और मकान नहीं मिलता,जहाँ आज भी बहुत से लोगों को दो जून की रोटी मयस्सर नहीं होती, दवा और इलाज के अभाव में लोग तड़प-तड़प के मर जातें हैं।भ्रष्टाचार की जड़ें अब इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि इन्हें उखाड़ फेंकने में शायद बरसो लग जाएँ।देश के आम नागरिक को सुरक्षा के नाम पर क्या मिला है बम के धमाके और ताबड़तोड़ चलती गोलियों की आवाज़.....जिस देश में देश का आधार और आधी आबादी कही जाने वाली महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं,जो अकेले बेख़ौफ़ कहीं आ ,जा नहीं सकतीं,उनकी इज्ज़त पे दाग लगाने के लिए भेड़िये खुले आम घूमते हों। इतना सब हो जाने के बाद भी क्या हम आज़ाद हैं?,,,,,राधा-कृष्ण ,हीर राँझा के देश में दो प्यार करने वालों को नफरत की बलि चढ़ा दिया जाता है सिर्फ अपनी झूठी और दो कौड़ी की इज्ज़त के लिए। ये इज्ज़त तब कहाँ चली जाती है जब पडोसी दुश्मन अपनी धरती माँ की इज्ज़त पर हाथ डालता है।
बेटों की लालसा में हम अजन्मी बेटिओं को निर्दयता से मार रहें हैं और अपने आप को गर्व से आज़ाद कहतें हैं। जिस देश में कई हज़ार लोग सिर्फ एक वक़्त खाना खातें हों और भूखे पेट सोना जिनकी मजबूरी हो,गरीबी जिनका नसीब है ऐसे में क्या हमे आज़ादी का जश्न मानना चाहिए????गहराई से आत्मचिंतन करिए और फिर बताइए की क्या मैंने कुछ गलत कहा है......जो मेरे इन सवालों को गलत ठैरा दे उसके लिए ये खुली चुनौती है कि वो इन सारे प्रश्नों का तर्क सहित उत्तर दे......अगर कोई यह कहता है कि नहीं आपके ये सारे तर्क गलत हैं और देश वाकई तरक्की कर रहा है और हम स्वतंत्र हैं तो मेरी नजरों में उससे बड़ा देशद्रोही कोई नहीं.....अब बदसूरत शक्ल आईने में बदसूरत ही दिखेगी और अगर कोई ये कहे कि नहीं सुंदर दिख रही है तो.... दिल बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है.....सिर्फ भाषण देने भर से देश तरक्की नहीं करता। आज़ादी मिले गरीबी से,भुखमरी से,भ्रष्टाचार से अशिक्षा से,रूढ़िवादिता से तभी तो हम आज़ाद होने का दवा कर सकतें हैं।
जिन लोगों ने इस देश को अपने खून से सींचा,उस देश के लोग अब इसका खून चूस रहें हैं। जिस तरह भगत सिंह ने असेम्बली में बम फेंकते समय यह कहा था कि बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है उसी प्रकार आज जब हम बहरे होकर अपने कानो पे हाथ रख कर बैठे हैं, हमें भी झकझोरने के लिए किसी धमाके की ही जरुरत है।जब तक हमारी अंतर-आत्मा साफ़ नहीं हो जाती और हम आज़ादी के सही मायने नहीं समझते तब तक हमें आज़ादी का जश्न मनाने का कोई हक नहीं है।


Tuesday 3 August 2010

कांवड़ यात्रा.......पुण्य या पाप.....


सावन का महीना आते ही पूरा माहौल शिवमय हो जाता है.....अगर कुछ सुनाई देता है तो वो है हर-हर महादेव की गूँजवैसे तो भगवान भोले नाथ पूरे भारत वर्ष में बारह महीने ही पूजे जातें हैं लेकिन सावन में इनका महत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। कुंवारी लड़किओं से लेकर बुजुर्ग तक सब सावन के महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने में लीन रहतें हैं।कुछ लोग सिर्फ सावन के सोमवार को ही जल चढ़ाते हैं और कुछ लोग पूरे सावन ही शिवालयों में जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करतें हैं।सावन लगते ही अगर कुछ विशेष होता दिखाई देता है तो वह है कांवड़ यात्रा। कांवड़ लाने के लिए शिव के भक्त पूरे साल इंतजार करतें हैं कि कब वो हरिद्वार के लिए प्रस्थान करेंगे और कठिन यात्रा को पैदल पार करके भगवान भोले नाथ पर चढाने के लिए जल लेकर आएंगे। कुछ लोग तो गंगोत्री तक से भी जल लेकर आतें हैं। प्.उत्तर प्रदेश समित दिल्ली,हरियाणा,राजस्थान तक में कांवड़ लाने का प्रचलन है।इस समय कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी हैं और अपनी चरम सीमा पर चल रही है और आठ अगस्त को पड़ने वाली सावन की शिवरात्रि को भोले नाथ के जलाभिषेक के साथ ही समाप्त होगी। शिवरात्रि से एक दिन पहले ही लाखों श्रद्धालु अपने मुकाम पर पहुँच जातें हैं।
ऐसा नहीं है कि कांवड़ यात्रा कोई नयी बात है यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है फर्क बस इतना है कि पहले इक्का-दुक्का शिव भक्त ही कांवड़ में जल लाने की हिम्मत जुटा पाते थे लेकिन पिछले ५-७ सालों में ऐसा क्या हुआ कि हर साल जल लाने के लिए शिव भक्तों कि संख्या बढती ही जा रही है। इक्का-दुक्का से सैंकड़ों फिर हजारों और अब लाखों,साल दर साल कांवड़ लाने वालों की तादात बढती ही जा रही है। क्या इस कलयुग में भगवान को प्रसन्न करने और पुण्य कमाने का यही एक तरीका रह गया है??????............कांवड़ यात्रा को सफल और सुरक्षित बनाने के लिए भारी तादात में पुलिस और प्रशासन लगा हुआ है। लाखों की संख्या में पहुँचने वाले श्रधालुओं की सुरक्षा प्रशासन के लिए चुनौती बनी हुई है।
कांवड़ लाने वालों की संख्या प्रति वर्ष जिस रफ़्तार से बढ़ रही है वो एक सोचनीय विषय है ये वाकई पुण्य कमाने का जरिया है या फिर कुछ और........कही कांवड़ लाने की आड़ में कोई और धंधा तो नहीं चल रहा। हर साल नारकोटिक्स विभाग की नजर रहती है कांवड़ लाने वालों पर। सबको पता है कि कांवड़ की आड़ में हर साल करोड़ों रूपये के नशे का कारोबार होता है। कांवड़ में छुपा कर अफीम,भांग,चरस की तस्करी की जाती है। हथियार भी छुपा कर इधर से उधर किए जाते है। कांवड़ के बहाने ये कारोबार खूब फल-फूल रहा है। जानते सब हैं पर मजाल है कि कोई कांवड़ को हाथ भी लगा दे,चेक करना तो दूर की बात है। धर्म की आड़ लेकर खुले-आम गलत काम होता है पर हम कुछ नहीं कर सकते क्योंकि आस्था सब पे भारी होती है।धर्म के नाम पर कुछ भी आसानी से किया जा सकता है ये हमारे देश की खासियत है। धर्म के नाम पर हम किसी को भी और कहीं भी बेवक़ूफ़ बना सकतें हैं इसका जीवंत उदाहरण है कांवड़ यात्रा। अब इसमें एक नयी बात और जुड़ गई है और वो हैं.....महिलाएं.......पहले इनका कांवड़ यात्रा से दूर-दूर तक कोई तक कोई वास्ता नहीं होता था,लेकिन अब महिलाएं भी पीछे नहीं है कांवड़ लाने में। जब महिलाएं जाएँगी तो लाज़मी है कि बच्चे भी जायेंगे। महिलाओं और बच्चों की आड़ में भी ये धंधा जोरों पर चलता है। ये काम करने वालों को पता है की महिलाओं को हाथ लगाने वालों की क्या दशा होगी, बस इसी बात का ये लोग फ़ायदा उठाते हैं। अगर कांवड़ जरा सी भी खंडित हो जाए तो बवाल होते भी देर नहीं लगती,श्रद्धालु आगजनी,पथराव और मारपीट करने में जरा भी देर नहीं लगाते। कहने का मतलब ये है कि कांवड़ की आड़ में जो लोग ये धंधा कर रहें हैं उनको प्रशासन खुद ही बढ़ावा दे रहा है,इनको रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है।
गलत काम जो हो रहा है वो तो है ही लेकिन कांवड़ यात्रा से पर्यावरण को जो भारी नुकसान होता है उसका जिम्मेदार कौन है?????हर साल लाखों श्रद्धालु जल लेने हरिद्वार पहुंचतें हैं। इतने लोगों के कारण गंगा तो मैली होती है पूरा वातावरण भी दूषित हो जाता है। जगह-जगह कैंप लगने के कारण झूठे पत्तलों के ढेर,खुले में मल-मूत्र करने के कारण फैलने वाली दुर्गन्ध से आम लोगों का जीना दूभर हो जाता है,किन्तु इन सब के बारें में कौन सोचता है। फिर वही बात आ जाती है कि आस्था सब पर भारी है....धर्म की आड़ में गलत काम हमेशा से ही होता आया है ये कोई नयी बात तो है नहीं.....लेकिन लोगों को ये तो सोचना ही चाहिए कि कम से कम धर्म की आड़ में तो ये सब न करें.....पुण्य कमाने के तो और भी बहुत से तरीके हैं....पुण्य ही कमाना है तो देश और समाज की सेवा करके ही कमा लो तो वास्तव में पुण्य ही मिलेगा........
पूजा सिंह आदर्श

Monday 2 August 2010

सनकी हैं क्या राहुल महाजन....????


राहुल महाजन एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं.........इस बार फिर उनके साथ एक और नया विवाद जुड़ गया है....वैसे ये उनके लिए नया बिल्कुल नहीं है इससे पहले भी वो इसी प्रकार के विवाद का हिस्सा रह चुके हैं।क्या राहुल महाजन घरेलू हिंसा के आदि हो चुकें हैं......इस बार भी उन्होंने अपनी पहली पत्नी श्वेता की तरह,अपनी नई पत्नी डिम्पी महाजन के साथ मारपीट की। डिम्पी ने पूरी मीडिया के सामने खुद बताया कि राहुल उनके साथ मारपीट करतें हैं,एक बार तो किसी मामूली सी बात पर उन्होंने उनपर बन्दूक तान दी थी...जब इस बात की शिकायत उन्होंने अपनी सास यानि राहुल की माँ से की तो राहुल ने उन्हें इस बात पर भी मारा था और मारना भी कोई ऐसा-वैसा नहीं राहुल ने डिम्पी को लात-घूंसों से मारा और उनके बाल पकड़कर खींचे.......अब चाहे राहुल डिम्पी से कितनी भी सुलह कर लें,मनाकर उन्हें अपने घर भी ले जाएँ या फिर डिम्पी भी उन्हें माफ़ कर दें पर राहुल की असलियत तो जगजाहिर हो ही गई है कि राहुल किस किस्म के इंसान है।
अब सवाल ये उठता है कि क्या ये सब करना राहुल महाजन को शोभा देता है???????ये राहुल महाजन के नाम के आगे एक बड़ा सवालिया निशान है कि जो महाजन नाम उनके साथ जुड़ा हुआ है क्या कभी उसके बारें में राहुल नहीं सोचते.......प्रमोद महाजन कि मौत के बाद ही दुनिया ने जाना कि राहुल महाजन कौन है?प्रमोद जी अगर जिन्दा होते तो ये दुनिया शायद जान भी न पाती कि राहुल महाजन कौन है और एक तरह से ये अच्छा भी होता। प्रमोद महाजन जानते थे अपने बेटे के बारे में ............कौन बाप नहीं जानता होगा कि उसका बेटा कैसा है वो उसका नाम रोशन करेगा या नाम पर धब्बा लगाएगा। पिता की मौत के तुरंत बाद ही नशे की हालत में मिलना और नशे के ओवर डोज के कारण अस्पताल में भर्ती होना फिर अचानक ही अपने बचपन की दोस्त श्वेता सिंह से शादी कर लेना और कुछ दिन बाद ही उसके साथ मारपीट करना इसके बाद श्वेता का राहुल का घर छोड़ कर उनसे तलाक लेकर हमेशा के लिए उनके घर को अलविदा कह देना। ये सब घटनाक्रम राहुल महाजन की जिंदगी में इतनी तेजी से बदले कि खुद उनको भी इसका अहसास नहीं हुआ। फिर अचानक राहुल महाजन इस उम्मीद को लेकर बिग बॉस में नज़र कि अब वो दुनिया को अपने बारें सही ढंग से बता सकें कि वास्तव में राहुल महाजन क्या हैं लेकिन वहां भी राहुल अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आये,एक तरफ तो पायल रोहतगी से नजदीकीयां बढाई दूसरी तरफ बिग बॉस के घर की दीवार कूद कर भाग गए.....इसका मतलब तो ये हुआ कि राहुल महाजन को विवादों से बेहद प्यार है और विवादों के साथ उनका चोली दामन का साथ है। राहुल की इन सब हरकतों से तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो कभी नहीं सुधरेंगे अगर ऐसा न होता तो खुद उनकी बहन पूनम महाजन राव ये कहने कि बजाय कि किसी भी महिला पर हाथ उठाना अपराध है क्योकि हर महिला का अपना आत्मसम्मान होता है यदि कोई इसे ठेस पहुँचाता है तो ये समस्त नारी जाती का अपमान है,अपने भाई का बचाव करती नज़र आती। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया और पहले भी कुछ नहीं किया था क्योकिं वो जानती है कि उनका भाई वास्तव में क्या है?पूनम महाजन और राहुल महाजन में जमीन-आसमान का अंतर है। पूनम ने अपने पिता के नाम को बढ़ाने की कोशिश की है जबकि राहुल ने अपने पिता के कमाए हुए नाम को ख़राब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
राहुल महाजन अब चाहे कुछ भी कह लें मगर दुनिया उनका सच जान चुकी है कि वो किस तरह के इन्सान हैं। वो कहतें हैं न कि कुत्ते की दुम को अगर बारह बरस तक भी नलकी में रखा जाए तो भी वो सीधी नहीं हो सकती यही हाल राहुल महाजन का भी है। अच्छा हुआ कि प्रमोद महाजन इस दुनिया में नहीं हैं,नहीं तो उन्हें अपने बेटे की वजह से जो sharmindgi उठानी पड़ती उसकी भरपाई वो शायद ही कर पाते।
पूजा सिंह आदर्श